ऑस्कर मिले या ना मिले लेकिन सामाजिक संस्था और सरकार के बचपन को लेकर ऐसे अनेक वादे हुए है तारे जमीं पर उतारे गए और एक नौजवान करोडपति भी बना फिर भी भारत देश की दशा नही सुध्ारी दिखीा दिशा सुधारने की बात ही छोडिएंा मधुर भंडारकर असलियत को पर्दे पर उतारने मे माहिर माने जाते है जो ट्रेफिक सिग्नल मे दिख भी, वही आमिर खान गिने चुने फिल्मों मे अपनी अदाकारी की छाप छोडते है ये सारे मशहूर हस्तियां जिसके सामने ये विषय कोई समस्या ना होकर पैसा बनाने की मशीन है फिर भी वास्तविक्ता यही है आज भी लोग भूखे नंगेऔर सडक पर सोने को मजबूर है शायद इनको ऑस्कर मिलता तो अमीरी गरीबी का भेदभाव कम होता लेकिन अक्सर ऐसा नही होगा मेरे देश मे गरीब गरीब ही रहे तो ठीक है आदिवासी छोटे कपडे पहने तो ठीक, कबिलों देहात गांवो में कोई महिला अर्दनग्न दिख्ो तो ठीक है क्यों कि पैसा बनाते है अगर गरीबी खत्म हो गई तो पैसा कमाने का नया आयडिया कहां से आएंगे
स्लमडॉग मिलेनियर को ऑस्कर एवार्ड मिलने या ना मिलने के पीछे एक बात जरूर सोचनीय है कि अगर ये एवार्ड एक ऐसी फिल्म को मिलती जिससे कि जाति, धर्म, छुआछुत रंगभेद सब मिट जाएं तो शायद हमारे महापुरूषों और अनगित देशवासियों पर भारतीय होने का गर्व सौगुणा और बढ जाएगां ,, स्लमडॉग मिलेनियर फिलम का 11 नामांकन होना अवार्ड मिलने की उम्मीद तो बढाती है लेकिन आजादी के इकसठ् साल बाद भी ऐसे हालातों पर तरस आनी चाहीएं कि रेल्वे स्टेशन पर क्यों भीख दिया जाएं, उस बच्चे को भीख्ा की बजाय अधिकारों के बारे में क्यों नही बताया जाएं, क्यो ना हर व्यक्ति अपने अधिकारों का ख्याल रखकर जिला अधिकारी से सवाल करे की बच्चे आखिर ऐसा क्यो कर रहे है कौन मजबूर कर रहा है इन्हे अपना बचपन बर्बाद करने के लिएा
ऑस्कर नामांकित स्लमडॉग मिलेनियर को मेरी अग्रिम शुभकामनाएं
3 comments:
आप सादर आमंत्रित हैं, आनन्द बक्षी की गीत जीवनी का दूसरा भाग पढ़ें और अपनी राय दें!
दूसरा भाग | पहला भाग
हमारी भी शुभकामनाऐं.
blog achcha laga , nice post
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