भारत को लोकतांत्रिक देश की संज्ञा दी गई है लेकिन लोगों का जीवन लोकतांत्रिक देश के अनुकूल नही है यहां हर क्षेत्र में समस्या ही समस्या है लोगों की समस्या के समाधान करने वाले को दबा दिया जाता है और न्याय संगत बाते करने पर आरोप जड़ दिए जाते हैं। ये किसी किताब से पढ़ा हुआ नही है और ना ही किसी के द्वारा बताया गया हैं। ऐसे हालात मुझ पर ही बन चुके हैं या कहे शिक्षा व्यवस्था पर वर्ग विशेष्ा का दबाव है कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविघालय अपने लक्ष्य से भटक चुका है पत्रकारिता की शिक्षा देने के बजाय (ब्राम्हण) वर्ग विशेष को अच्छे नम्बर दिए जाते है मेरा मक्सद हिन्दू
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र्म की बुराई करना तो नहीं, लेकिन बेबाक बोलना मेरी बुराई है ये सभी शिक्षक कहते है सेमेस्टर की पढाई परीक्षा का परिणाम आ चुका है जिसका कोई औचित्य नही है पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष भी अधिकतर छात्र-छात्राएं परीक्षा परिणाम को लेकर असंतुष्ट हैं। वहीं इस वर्ष चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं। उत्तीर्ण परीक्षार्थियों की संख्या 76.92 प्रतिशत रही और अधिकतर छात्रों को पूरक दे दिया गया। लेकिन इन सबमें भी चौकाने वाली बात रही। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के छात्र जीतेन्द्र सोनकर को एक विषय में पूरक दे दिया गया। जोकि निजी टीवी चैनल में संबंधित विषय के अंतर्गत कार्यरत् हैं। जिस विषय में पूरक दिया गया वो है एडिटिंग ग्राफिक्स। जिसे बतौर नॉन लीनियर एडिटर की मुख्य भूमिका में 3 साल का अनुभव है। मीडिया क्षेत्र में अनुभव प्राप्त छात्र को पूरक देना विश्वविद्यालय के लिए एक शर्मनाक बात है और जाहिर है कि परीक्षा परिणाम में त्रुटियां पाई गई है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विभागाध्यक्ष से इस विषय पर बात करने पर आश्वासन के सिवाय कुछ न्याय संगत बातें नहीं मिली।
विभिन्न विषयों के परिणामों को देखें तो चौकाने वाले परिणाम आते हैं जिसमें लगातार 2 सेमेस्टर से प्रथम श्रेणी पर उत्तीर्ण छात्र को इस बार सेकेण्ड दर्जा दिया है। वहीं एम.जे. के छात्र में भी काफी फेरबदल हुए हैं। कुल मिलाकर सभी विषयों में विशेष वर्ग को महत्व दिया गया है। जितने भी छात्र पहले पायदान पर पहुंचे हैं वे सभी ऊंची जाति के हैं। जिनमें अधिकतर शर्मा, मिश्रा, शुक्ला जैसे उपनाम वाले छात्र हैं। वहीं पिछले सेमेस्टर के परिणाम में जाति विशेष को दर्जा नहीं दिया गया था। इस सेमेस्टर के उत्तीर्ण छात्र जो कि अच्छे नंबरों से अच्छे पायदान पर पहुंच चुके हैं। उन छात्रों को अच्छे पायदान पर पहुंचने का अंदाजा तो दूर पूरक आने तक का डर था। उसी डर ने इस तरह की जातिगत नंबरों को महत्व देने के आधार पर विश्वविद्यालय पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।
असंतुष्टों की श्रेणी में ब्राह्मण वर्ग को छोड़ सभी निम्न वर्ग की श्रेणी में आते हैं। एस.टी.,एस.सी. और ओबीसी छात्र-छात्राओं का गुस्सा फूट रहा है। वाकई अगर हालात ऐसे ही बने तो वो दिन दूर नहीं जब हिन्दू खुद आपस में वर्ग विशेष के लिए न्याय पाने हिंसात्मक कदम उठा लेंगे। विश्वविद्यालय में बहुत सारी गतिविधियां ऐसी होती है जो कि जाति के आधार पर जाति में खुद को ऊंचे पायदान पर पहुंचाने की कोशिश रहती है। मेरा मकसद न ही जातिगत भावनाओं में फूट डालना है और न ही जाति के आधार पर भेदभाव करना है। लेकिन अगर बात शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र की हो तो शिक्षा अधिकारी को चुप नहीं बैठना चाहिए क्योंकि राष्ट्रभक्ति में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है। मेरा स्वयं पूरक आना पता नहीं मेरी पत्रकारिता में कितने आड़े आती है, लेकिन मैं उन पत्रकारों में से नहीं हूं जो प्रथम श्रेणी के आधार पर पत्रकार बनते हैं। अनगिनत लेखकों एवं विद्वानों के मदद से मैं अपनी बेबाकी को समय आने पर ज़रूर प्रस्तुत करूंगा।