Thursday, December 4, 2008

पाकिस्‍तान राष्‍ट्रध्‍वज में लगी आग

देश का सबसे बड़ा आतंकी हमला भले ही मुंबई में हुआ हो। लेकिन हर एक देश वासियों में उस आतंकी हमले को लेकर नाराज़गी इस कदर है कि अपनी परवाह किए बगैर ही आतंक के सरताज पाकिस्‍तान को आतंकी संगठनों का हवाला देकर नारेबाजी की गई। लेकिन बात आतंकी हमलों तक ही सीमित नहीं रही और न ही मुंबई तक। हर एक देशवासी चाहे वो अमीर हो या गरीब। हर कोई आतंकी हमले पर मुंहतोड़ जवाब देना चा‍हता है।
राजधनी रायपुर में छत्‍तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा पाकिस्‍तान का झंडा जलाया गया। प्रदेश कांग्रेस कमेटी का ये गुस्‍सा एक हद तक सही भी है, लेकिन कुछ आतंकियों के कारण पाकिस्‍तान के राष्‍ट्रध्‍वज का अपमान करना भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए पता नहीं क्‍या संदेश देना चाहती है।

आतंक के खिलाफ आतंक के रूप में जवाब देना करोड़ों देशवासियों को हिंसा की ओर भेज सकती है और हिंसात्‍मक रूप शांति का प्रतीक कभी नहीं होता। आतंकियों का जवाब देने के लिए हमारे देश के फोर्स, कमाण्‍डो, बटालियन पर देशवासियों को भरोसा करना होगा। जो अपनी जान परवाह किए बगैर देश की रक्षा के लिए जान न्‍यौछावर कर देते हैं। मैं सलाम करता हूं ऐसे वीर शहीदों को जो देश में शांति और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर देते हैं।

Saturday, October 18, 2008

देह व्‍यापार और मानव तस्‍करी का अड़डा है छत्तीसगढ़ का आदिवासी क्षेत्र |

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लडकियों के विकास के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। उसके बाद भी राज्य के आदिवासी बाहुल्य जशपुर तथा सरगुजा जिले की हजारों लडकियां महानगरों की सब्जबाग के झांसे में आकर वहां नरक की जिंदगी जी रही हैं। कईयों की मौत के बाद उनकी लाश तक घर नहीं पहुंच पाई। किसी तरह भागकर घर पहुंची लड़कियां विक्षिप्त और रोग ग्रस्त होकर काल के गाल में समा गई। इसके बाद भी अच्छी नौकरी दिलाने के नाम पर इन आदिवासी क्षेत्रों से लड़कियों की तस्करी जारी है। अब तक कई तस्कर भी पकड़े जा चुके है। लेकिन सरकार इस दिशा में गंभीर नहीं हुई है। बंग्लादेश, मिजोरम तथा नेपाल की तरह छत्तीसगढ़ की लड़कियों की तस्करी पिछले सात सालों से बखौफ चल रहा है। लड़कियों को दिल्ली, गोवा जैसे महानगरों का सब्जबाज तथा ऐश की जिंदगी जीने सपना दिखाकर तस्कर अपने जाल में फांस रहे हैं। लेकिन दुभाग्य की बात है कि सरकार द्वारा इस ओर कोई सार्थक पहल नहीं किया जा रहा है। जशपुर में मानव व्यपार के खिलाफ पिछले दो सालों से अभियान चला रही संत अन्ना एनजीओ की सि. सेवती पन्ना बताती हैं कि सन् 2005-07 में किये गये सवरॊ में जशपुर के 98 पंचायतों से 3191 लड़कियों को एजेंटों ने अपने जाल में फांसकर कथित प्लेसमेंट एजेंसियों के हवाले कर दिया। अगर पूरे जशपुर जिले का सर्वे किया जाये तो यह आकड़ा बीस हजार तक पहुंच सकता है। उन्होंने बताया कि दलालों को एक लड़की पर छह हजार से लेकर आठ हजार रूपये तक कमीशन मिलता है। यह कमीशन तब और भी यादा होता है जब लड़की की उम्र बारह से पन्द्रह साल के बीच होती है। जहां से एजेंट लड़कियों को दिल्ली स्थित प्लेसमेंट एजेंसियों के हवाले कर देते हैं। वहां एजेंसी संचालक महिने भर तक लड़कियों को छोटे-छोटे कमरो में पन्द्रह, बीस-बीस की संख्या में रखते है और उनके साथ लड़के भी होते हैं। जहां उन्हें जबरन शराब पिलाई जाती है, ब्लू फिल्म दिखाई जाती है और उन्हें कई लोगों के साथ सेक्स के लिए अभ्यस्त किया जाता है। महिने भर बाद उन्हें रईस जादों के बंगलों में काम करने के लिए भेज दिया जाता है। बंगलों के मालिक प्लेसमेंट एजेंसी के संचालकों से 11 माह के लिए अनुबंध करते हैं। पैसा सीधे लड़की को न देकर प्लेसमेंट एजेंसी के संचालकों को मिलती है। उसका बीस-पचीस फीसदी राशि ही लड़कियों को दी जाती है। प्लेसमेंट एजेंसी में ही लड़कियों के साथ शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना खत्म नहीं होती बल्कि जब ये लडक़ियां रईसों के घर काम करती है वहां भी इनके साथ जानवरों की तरह सलूक किया जाता है। घर मालकिन जहां इन्हें खाना नहीं देकर तथा मारपीट करते हुये प्रताड़ित करती है वहीं दूसरी तरफ इात के साथ खिलवाड़ होता रहता है। कभी बंगले का मालिक तो कभी उसका बेटा और कभी उसका गार्ड व ड्राईवर अपनी हवस मिटाते रहते हैं। उन्होंने बताया कि जिस हालत में गांव छोड़कर लड़कियां जाती है उस हालत में नहीं लौट पाती। कईयों की तो वहीं मौत हो जाती है और लाश तक का पता नहीं चलता। जशपुर के बगीचा थाना क्षेत्र स्थित महुवाडीह निवासी आलोचना बाई 17 वर्ष की घर लौटते ही मौत हो गई। जबकि तीन अन्य लड़कियां विक्षिप्त अवस्था में घर लौटी । जशपुर में तीन साल के भीतर 11 लड़कियों की मौत हो चुकी है। आलोचना बाई के ईलाज के नाम पर प्लेसमेंट एजेंसी ने तीस हजार रूपये का बिल उसके पिता को थमा दिया और बेटी को किसी तरह घर तक लाने में जमीन जायजाद बिक गई। आलोचना ही एक ऐसी लड़की नहीं है बल्कि सरगुजा जिले के सीतापुर क्षेत्र स्थित राजापुर निवासी एक लड़की की लाश दिल्ली में ही सड़ गई। यह युवती अपनी छोटी बहन के साथ दिल्ली चली गई थी। इस घटना के बाद आशंका जताई जा रही थी कि जब वह गर्भवती हुई होगी तो उस पर गर्भपात का दबाव डाला गया होगा और जब उसने इंकार किया होगा तो उसकी हत्या कर दी गई। इस आशंका पर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसी तरह कोट छाल निवासी 17 वर्षीय सीतो बाई को एजेंट द्वारा अपने साथ ले जाया गया था लेकिन कुछ महिने बाद एक सुबह वह घर के बाहर विक्षिप्त अवस्था में पडी हुई मिली। उसके हाथ-पैर बंधे और टूटे हुए थे। मानव तस्क री से सरगुजा और जशपुर के शैक्षणिक संस्थान भी सुरक्षित नहीं रह गये है। सरगुजा जिले के राजपुर विकासखंड स्थित कोदौरा के मिशन स्कूल के हॉस्टल से तीन लड़कियों को एजेंट ने दिल्ली ले जाकर नरक के दलदल में डाल दिया था। इनमें एक गुंगी लड़की भी थी। सरगुजा में मानव तस्करी तथा एड्स जागरूकता के खिलाफ काम कर रहे आशा एसोसिएशन तथा नवा बिहान कल्याण समिति के पदाधिकारियों ने छुटकारा दिलाया। ये दोनों एन.जी.ओ. कुछ सालों से मानव तस्करी के खिलाफ काम कर रहे है। एनजीओ को मानव तस्करी व एड्स के खिलाफ अभियान चलाने के लिए क्रिश्चयन रिलिफ सर्विस द्वारा दो वर्ष पूर्व बजट उपलब्ध कराया गया था। संत अन्ना की सि. सेवती का कहती है कि उन्होंने दिल्ली स्थित 144 प्लेसमेंट एजेंसियों का निरीक्षण किया है और वहां रहने वाली लड़कियों की नरकीय जिन्दगीं को नजदीक से देखा है। दिल्ली में करीब तीन हजार प्लेसमेंट एजेंसियां है और करीब-करीब सभी एजेंसियों का नाम देवी देवताओं तथा धर्म पुरोहितों के नाम से है। इनमें मरियम, गणेश, संत अन्ना, जय माँ दुर्गा, मदर टेरेसा, आदि शामिल हैं। इन नामों का बोर्ड लटके देख किसी को सहसा यकिन नहीं होता कि यहां काम दिलाने के नाम पर लडक़ियों के साथ जल्लाद जैसा व्यवहार भी होता होगा। उन्होंने बताया कि लड़कियों का नाम तथा पता प्लेसमेंट एजेंसी में बदल दिया जाता है ताकि कोई उन्हें ढूंढने जाये तो उसका पता न चले। सरगुजा तथा जशपुर के अलावा रायगढ़ तथा झारखंड एवं बिहार की लड़कियों को भी दलाल अपने जाल में फांस रहे है। झारखंड की तीन लड़कियां मार्च 2006 में गर्भवती हो गई थी। इनमें एक लड़की जयपुर के आबकारी अधिकारी के घर में काम करती थी जहां उसके साथ अधिकारी के प्रमोद नामक बेटे ने बलात्कार किया । जब वह गर्भवती हुई तो कमिश्नर के बेटे ने गर्भपात कराने का दबाव डाला। जब उसने इससे इंकार कर दिया तो एक रात उसे गार्ड के माध्यम से इस रईस जादे के बेटे ने घर से निकाल दिया और वह चेतनालय नामक एक एनजीओ में पहुंची और जहां आप बीती बताई। चेतनालय के डोमेस्टिक वर्कर फोरम ने युवती को जयपुर पश्चिम कोतवाली ले जा कर घटना की रिपोर्ट लिखवाई । फोरम के निर्देशक सिस्टर लेवना बताती हैं कि पुलिस ने अपराध दर्ज कर आरोपी युवक को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन डाक्टरी रिपोट में बलात्कार का मामला नहीं आने पर आरोपी बेल पर न्यायलय से छूट गया । अब मामला न्यायलय में विचाराधीन है पर गरीबी एवं जागरूकता के अभाव में पीडित युवती कोर्ट नही आ रही है। इससे आरोपी युवक न्यायालय से बरी हो सकता है। कई रईस जादे प्लेसमेंट एजेंसियों से लड़कियों को काम पर इसलिए भी रखते है ताकि उन्हें और उनके परिवार के युवकों को शादी के पहले वेश्यालय न जाना पड़े। नवा बिहान कल्याण समिति के नौसाद अली बताते है कि मानव तस्करी की समस्या काफी गंभीर हो गई है। इससे सरगुजा जिले के कुसमी, शंकरगढ़, बतौली, सीतापुर, उदयपुर क्षेत्र सबसे यादा प्रभावित है। सीतापुर, बतौली तथा उदयपुर विकासखंड का निरीक्षण किया गया था जिसमें 762 लड़कियां दिल्ली गई थी। लेकिन उस समय लोग खुलकर बताने को तैयार नहीं थे। संस्था ने आशा एसोसियएशन के साथ मिलकर सर्वे करना शुरु किया तो एक-एक गांव से चालीस-पचास लड़कियां गायब मिली। इसके लिए जागरुकता का कार्यक्रम शुरु किया गया। इसका अच्छा प्रतिसाद देखने को मिला लेकिन सरकार द्वारा इसके लिए कोई बजट नहीं मिलने के कारण वे ठीक से काम नहीं कर पा रहे है। इसी सप्ताह सरगुजा जिले से दिल्ली गई 70 लड़कियों को वापस लाया गया। ये लड़कियां अब भूलकर भी वहां नहीं जाना चाहती। नौसाद बताते है कि दोनों संस्थाओं द्वारा ऐसी लड़कियॊ के अभिभावकों से संपर्क कर पहले तो गुमशुदगी की थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है या फिर बहला फु सलाकर ले जाने की जानकारी पुलिस को दी जाती है। इसके बाद पंचायत से युवती तथा उसके अभिभावक रिश्ता बताते हुये एक प्रमाण पत्र पंचायत से जारी किया जाता है। जिसमें दोनों का फोटो होता है। इतनी कार्रवाई कर अभिभावाकों को दिल्ली भेज दिया जाता है। दिल्ली में मानव व्यापार के खिलाफ काम करने वाले सिस्टर सोफिया व मैक्सिमा युवतियों को जाल से छुडाने अभिभावकों का मदद करती हैं। नौसाद मानव व्यापार रूपी इस पलायन को देह व्यापार का बिगड़ा स्वरूप मानते हुए कहते है कि इससे सरगुजा तथा जशपुर में एड्स की भयावह स्थिति है। अगर जांच की जाये तो चौकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं। सिस्टर सेवती पन्ना कहती है कि कई लड़कियां वापस घर आने के बाद दोबारा फिर दिल्ली जाना चाहती है। इसका प्रमुख कारण है कि गांव लौटने के बाद उन्हें समाज दूसरी नजर से देखने लगता है और वे कुंठित रहने लगती है। यही नहीं वहां रहकर ये लड़कियां फ्री सेक्स के लिए स्वतंत्र रहती है। लेकिन यहां वह संभव नहीं होता। सब्जबाग में फंसकर लड़कियॊ के दिल्ली जाने के लिए सेवती पन्ना गरीबी को यादा जिम्मेदार नहीं मानती बल्कि वे नैतिक शिक्षा के अभाव को महत्वपूर्ण मानती है। एनजीओ ने जब लड़कियॊं की तस्करी के खिलाफ काम करना शुरु किया तो मामला खुलकर सामने आया और पुलिस ने भी एजेंटो के खिलाफ कार्रवाई शुरु की। दोनों जिलों में कुछ सालों के भीतर दर्जन भर से अधिक एजेंट पकड़े जा चुके है। इन एजेंटों में महिलाएं तथा स्थानीय लोग भी शामिल हैं। जशपुर के कुनकुरी में एजेंटो के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर उन्हें छोड़ देने का मामला विधानसभा में भी उठा था और गृहमंत्री ने कुनकुरी थाना के तीन पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया था। उसके बाद भी दोनों जिलों सहित दूसरे प्रभावित राज्यों में पुलिस द्वारा एजेंटो पर सख्ती से कार्रवाई नहीं की जाती। जशपुर में बाहरी एजेंटों के अलावा लड़कियॊ की तस्करी में लोहार तथा डोम जाति के लोगों का हाथ भी सामने आता रहा है। यही नहीं जशपुर जिले के सोनकयारी गांव का एक व्यक्ति दिल्ली में प्लेसमेंट एजेंसी चलता है और इसी समय कुनकुरी की दर्जनों लड़किया दिल्ली स्थित श्री गणेश प्लेसमेंट एजेंसी में फसी हुई है। बताया जाता है कि इन्हें जशपुर के बटईकेला निवासी बंटी नामक एजेंट ने एजेंसी के हवाले कर दिया है। जशपुर में लड़कियों को काम दिलाने के नाम पर तस्करी का धंधा सन् 2000 के आस-पास शुरु हुआ था। उस समय लड़कियां खुद काम की तलाश में बड़े शहरों की ओर रुख कर रही थी। लेकिन उस समय इसका पता शायद उस समय किसी को नहीं था कि आने वाले दिनों में इसका भयावाह रूप देखने को मिलेगा। वहीं सरगुजा में इसकी शुरुवात मैनपाठ से हुआ जहां के गलीचा सेंटर वाले क्षेत्र के लड़कियों को बनारस स्थित भदोही के कालीन उद्योग के लिए भेज रहे थे। मैनपाठ से लड़कियों की तस्करी अभी नहीं रूकी है। आशा एसोसिएशन के डायरेक्टर फादर विलियम ने बताया कि संस्था द्वारा इन दिनों सीतापुर क्षेत्र के 50 गांव में लोगों को जागरूक करने के लिए काम किया जा रहा है लेकिन जागरूकता कार्यक्रम में सबसे बड़ी बाधा लोगों द्वारा धर्मान्तरण की गलतफलमी है। दूसरी समस्या पंचायतों से पंचायत प्रतिनिधियों का सहयोग नहीं मिलना है। संस्था के कार्यकर्ताओं के साथ दिल्ली,मुंबई,बंगलोर से पीड़ित होकर लौटी लड़कियों द्वारा गांवो में जाकर लोगों को आप बीती सुनाई जाती है ताकि एंजेटों के बहकावे में दूसरी लड़कियां न आवे। संस्था द्वारा गांव में निगरानी समिति भी बनाई गई है जो गांव में लडकियों को बहला-फुसलाकर ले जाने वालों पर नजर रखती है। लड़कियों की तस्करी को देखते हुये राष्ट्रीय स्तर पर घरेलू कामकाजी महिलाओं तथा लड़कियों के लिए कानून बनाने पर भी विचार किया गया। मार्च 2007 में भी मंत्रालय ने देश भर के सभी राज्यों से महिला बाल विकास तथा एनजीओ के प्रतिनिधियों को इसके लिए आगे आने कहा था। लेकिन छत्तीसगढ़ की एक मात्र सिस्टर सेवती पन्ना इस बैठक में गई थी। अभी तक सरकारी स्तर पर डोमेस्टिक वर्करों के लिए कोई कानून नहीं बनाया जा सका है। मुझे आज तक पता नही चल पाया कि सरकार की योजनाएं लडकियों की किस दशा को बेहतर बनाने प्रयासरत है \

Monday, October 13, 2008

सलवा जुडूम के संदर्भ मे

छत्‍तीसगढ़ में नक्‍सल समस्‍या से प्रदेशवासी अवगत है लेकिन पुलिस महानिदेशक विश्‍वरंजन का कहना है कि यह समस्‍या ए‍क राष्‍टीय समस्‍या है बडी देर से ही सही लेकिन पुलिस महानिदेशक इस समस्‍या को लेकर चिंतित दिखे ही। लेकिन दूसरी ओर एक खबर हवे मे उडकर आयी वो ये कि, बजरंग दल और अन्‍य धार्मिक संगठन पर भी प्रतिबंध लगया जा रहा है पता नही देश का क्‍या हाल होगा लेकिन अगर धार्मिक संगठन को बंद कर दिया गया तो लाठी, डंडे और तलवार, भाले ,ऋशूल वाले संगठन पार्टी का क्‍या होगा, और सलवा जुडूम का क्‍या होगा जहां आदीवासी तीर धनूष के बल पर नक्‍सलीयों से लडते है मै तो सोच रहा था कि बजरंगी सलवा जुडूम का साथ देने वाले है और वैसे भी आदीवासी वर्ग ही धर्मांतरण कर रहे है एक तीर से दो निशाना हो जाएगा। नक्‍सली समस्‍या भी खत्‍म हो जाएगा ।
जिस धार्मिक संगठन को राजनीतिक पार्टियां आतंकवादी संगठन कह रही है वह तो जानते ही नही कि अस्‍त शस्‍त का उपयोग करने संगठन नक्‍सली इलाकों मे कूच करने वाले है ऐसे धर्म के रखवाले को नक्‍सलीयों से डर नही लगता। ये खबर मुझे कुछ महीने पूर्व वेलेन्‍टाइन डे, और फ्रेन्‍डशिप डे के दिन मालूम चल गया, जब राजधानी रायपुर मे ये संगठन इस आयोजन को पश्‍चिमी संस्‍क़ृति बताकर विरोध प्रर्दशन कर रहे थे इतनी बहादूरी भला किस संगठन मे हो सकती है।अखबार से लेकर टी़वी़ चैनल तक में हेडलाइन्‍स बनने वाले धार्मिक संगठन को भारत के लोग कितने हल्‍के मे ले रहे है ये राजनेताओं के मानसिक दिवालियापन को दर्शाता है
मै तो अगली चिटठी पुलिस महानिदेशक को लिखने वाला हू और उनसे आग्रह करूंगा कि जितने भी धार्मिक संगठन है उन्‍हे तत्‍काल सलवा जुडूम आंदोलन के लिए भेजा जाएं ,और तैयारी कराने की कोई जरूरत न‍ही है उनकी देशभक्ति पर कृपया शक न करें ये हमारे धर्म को बचाने के लिए हमेशा आगे रहते है और वैसे भी जब ये एक राष्‍टीय समस्‍या है तों फिर राष्‍ट सेवा का मौका देना तो बहूत जरूरी है।
धन्‍यवाद

Wednesday, October 8, 2008

और फिर गरीब की झोपड़ी से ?





मैं एक सामान्य इंसान से मिला जिसे बॉलीवुड की विचित्र दुनिया मे स्वयं सहायक भूमिका के साथ लाखों बुराइयों के बावजूद प्यार करते हुए दिखाया गया ,क्या वास्तव मे वह गांधी जी थे या फिर कोई और लेकिन जब शहर की गलियों मे एक प्रभावशाली व्यक्तित्व की तलाश करते घूमा तों कांसे मे ढले सार्वजनिक पार्क मे सरकारी संस्थानो के बाहर अकेले खडे कुछ सोंच रहे थे देखते ही देखते भारतीय रिजर्व बैंक के करेंसी नोट पर उनकी फोटो छपी थी
मझोले कद का वह व्यक्ति , छरहरा बदन, चश्मा पहने व लम्बी लाठी लिए, सफेद धोती बांधे अपने ढंग की पुरानी सी विशेष घड़ी के साथ पता नही चौराहे पर क्यो खडे है वहां खडें कुछ बुजूर्गो ने कहा की ये हमारे आदर्श पुरूष है और अंग्रेज इनसे डरकर भाग गए।1947 की आजादी मे इनका महत्तवपूर्ण योगदान था। (लेकिन कैसी आजादी ? )

अमीर धरती मे कुछ गरीबों के लिए भी सोंचा जाता है ऐसे ही एक राजनीतिक पार्टी के स्लोगन मे नजर गई ,, कांग्रेस का हाथ गरीब के साथ ,, भाजपा सरकार गांव गरीब और किसान की सरकार ,,जो बहूजन की बात करेगा,,,-और भी राजनीतिक पार्टिया गरीबो का साथ देने की बात करते नजर आयी ,पर गरीब कहा रहते है ?

गरीबों के आदर्श व्यक्तित्व की तलाश करते मेरी नजर ने एक अन्य उपस्थिति दर्ज की वह थी नीला सूट काली टाई व मोटे फ्रेम का चश्मा लगाए और अपने बॉये हाथ से कलेजे पर लगायी एक पुस्तक के साथ खड़ा -वह व्यक्ति ? मैने उसे दलितों के बीच हर जगह पाया ,पता नही लगा पाया की संविधान निर्माता वाकई डॉ. भीमराव अम्बेडकर हैं जब तक की दलितों की एक टोली से मेरी मुलाकात नही हुयीं इनका रूपचित्र उनकी दीवारों पर लगा और उनके शब्द उनके होंठों पे हावी,,,,

मेरे मन में विचार आया कि क्या एक धोती धारी और एक कोट धारी महापुरूषो को भी अमीरी और गरीबी ने बांट दिया तभी दलितों के बीच एक बूढ़ी औरत ने पूछा की - बेटा क्या पूरे विश्व मे गांधी जैसे अंबेडकर भी मशहूर है। मै फिर ? ? ? ? ?

Tuesday, October 7, 2008

कही गुम हो गई है मानवता....?

राष्‍ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्धारा उच्‍चतम न्‍यायालय में सौंपी एक रिपोर्ट में नक्‍सली गतिवधियों पर काबू पाने के लिए शुरू किए गए सलवा जुडूम आंदोलन से हो रहे अत्‍याचार पर,,, छत्‍तीसगढ मे सलवा जुडूम आंदोलन को क्लिन चीट मिल चुकी है संवेदनशील इलाकों से आदिवासीयों को सलवा जुडूम कैंप में रखकर भरपूर ख्‍याल रखा जा है, जिसमे मेरे एक मित्र तुलेन्‍द्र पटेल की कविता से आंदोलन और न्‍याय करने की रीति नीति से मानवता कलंकित हो चुकी है........?
मानव बढ् गए है
मानवता घट गयी है
पहले भावना विशाल थी
अब सिमट रहे है
बाद रही है दूरियां
आदमी की आदमी से
इंसान की लाश अब
चौराहे पर लटक रहे है
किसी की कलाई मे
सोने की घडी होती है
किसी की कार
मोंतियों से जडी होती है
और किसी की लाश
बिना कफन के पडी होती है

Monday, October 6, 2008

पत्रकारिता विश्वविद्यालय बनाम चटूकारिता विश्वविद्यालय

कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं भारतीय लोकतंत्र के निचले से भी न्यूनतम हो चुके है। अधिकतर छात्र इसका विरोध भी करते आएं है। लेकिन विश्वविद्यालय अपने मूलमंत्र 12 चपरासी फुल अययाशी, में व्यस्त है। पत्रकारिता के नाम पर नाममात्र शिक्षा मिलती है। और चटूकारिता करने में फूल नम्बर। इस घटना को एक साल हो चुके है। 4 अक्टूबर 2007 को छात्र धरने पर बैठ गए। छात्रों की मांग सिर्फ शिक्षकों की भर्ती को जल्द से जल्द पूरा करने की थी। जिसे आज 1 साल हो चुके है, पिछले साल विज्ञापन भी निकाले गए और साक्षात्कार भी हो चुका,लेकिन शिक्षको की भर्ती प्रक्रिया का कोई पता नही ,पिछले साल सीनियर ,जूनियर छात्र एक साथ मांग पर आंदालने में कूदे थे। सीनियर छात्रों की पढ़ाई पूरी हो गई। जूनियर छात्र आज भी पढ़ रहे है लेकिन मात्र 3 शिक्षक है, जो पहले से ही है। आज तक छात्र शिक्षक के बगैर लाइब्रेरी के भरोसे पढ़ाई करते है। लाइब्रेरी में पुस्तके भरी हुई है इन्ही पुस्तकों को पढ़कर छात्र आंदोलन मे कुद पडे थे। धन्य हो कुलपति महोदय का पुस्तकें तो उपलब्ध हो पाई।
कुलपति महोदय से पढ़ाई के बारे में चर्चा करने पर घूमा-फिराकर कर जवाब देते है। 52 हजार फीस देकर पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को संतुष्ट करने के लिए पडोसी राज्य मध्यप्रदेश के माखनलाल वि.वि. से मेहमान शिक्षक भी बुलाएं जाते रहे है। और रविवार को भी कक्षा लगने का कार्य भी तगड़ा चला ,फिर सभी माहौल शांत होते देख वि.वि.प्रशासन खामोश हो गया ,छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले कुलपति महोदय फिल्मी डॉयलॉग भी सुनाते है महोदय के सीधे-साधे रवैये से छात्र हर बार ठगे जाते रहे है। और आज तक पुनरावृत्ति हो रही है।
छात्र हर बार की पुनरावृत्ति से दो धड़ मे बट चुके है। एक तरफ पत्रकारिता के तो दूसरी तरफ चटूकारिता के छात्र आपसे मे भीड़ जाते है। और वि.वि. प्रशासन खामोश रहता है। अब समस्या क्षेत्रवाद तक बढ़ गया है, छात्र क्षेत्रवाद के शिकार हो रहे है। पूरे वि.वि. में अराजकता का माहौल बढ़ाता जा रहा है। तो छात्र भी चुप्पी साधे हुए है। छत्तीसगढ़ सरकार के सात वि.वि. में कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता वि.वि.भी शामिल है, जो फिलहाल किराए के भवन में संचालित हो रही है। वि.वि. में अटल बिहारी बाजपेयी का योगदान भी है रमन सरकार के कार्यकाल में इस वि.वि. का हाल बेहाल है। जब पांच साल के कार्यकाल मे छात्रों को शिक्षक मुहैया नही कर पायी तो आगे कार्यकाल मे इसका हाल प्रशासन भरोसे है
फिलहाल अधिकतर छात्र चटूकारिता करने से व्यस्त है, और अव्यवस्था के खिलाफ बोलने वाले बचे कुछ छात्र डिफाल्टर घोषित हो चुके है और यही चटूकारिता करने वाले छात्र आगे चलकर राजनीति करने की बात करते है पता नही हमारे लोकतंत्र का और चटूकारिता-पत्रकारिता का भविष्य किसके हाथ में है……………………………………….

आज भी धरती के उपर होती है -गेडी डांस

अगर आपको छत्‍तीसगढ् में सडक की उंचाई से बांस के सहारे कोई व्‍यक्ति या बच्‍चा नाचते झूमे दिखे तों डरीए नहीं, छत्‍तीसगढ् में बांस के सहारे डांस करना एक कला है जो काफी सावधानी से किया जाता है, छत्‍तीसगढ् मे पोला त्‍यौहार के समय हर गांव अंचल मे गेडी नाच आसानी से देखने को मिलती हैा बांस के लम्‍बे डंडे में ,एक हिस्‍सा अलग से जोड्ा जाता है उस हिस्‍से पर पैर रखा जाता है और फिर दौड् कर ,चलकर एक जगह से दूसरे जगह कलामक त्‍ढ्ग से आसानी से चलना ही इस डांस का मुखय पैमाना होता हैा प्राय दक्ष प्रतिभागी ही आसानी से गेडी डांस मे थिरकते है,गेडी डांस की शुरूआत पोला त्‍यौहार को माना गया है खेती बीज बोने के बाद किसान खुश होकर नाचने के लिए बांस का गेडी बनाते हैा आधूनिककिरण के दौड में भले ही गेडी डांस शहर से दूर हो चुकी है लेकिन ग्रामीण अंचलो में आज भी युवा और बच्‍चे गेडी डांस का लुत्‍फ उठाने नही चुकते है छत्‍तीसगढ् के प्रमुख त्‍यौहारों में पोला त्‍यौहार को स्‍थान मिल चुक हैा अब विशेष मौके की तलाश कर ग्रामीण झूम उठते हैा और धरती के उपर झूमना और मस्‍ती करना भला किसे अच्‍छा नही लगता

Saturday, October 4, 2008

छात्र संगठनों ने बढ़ा दी है बेरोजगारी ?

भारत में आज जितना महत्‍व राजनीति में युवाओं को दिया जा रहा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है, कि राजनीतिक झंडा पकड़कर नारे लगाना, विरोध प्रदर्शन करना, धरने पर बैठना और बेगारी भरा काम करना जिससे राजनीति के एप्रोज में पकड़ हो जाए, में युवा बेरोजगारों का प्रयोग किया जा रहा है। छत्‍तीसगढ़ के संदर्भ में बात करें तो युवा शक्ति, राष्‍ट्रशक्ति का बहाना बनाकर पूंजीपति वर्ग, मध्‍यम वर्ग के युवाओं के साथ राजनीतिक स्‍वार्थ निकालने के साथ मध्‍यम वर्गीय परिवार में बेरोजगारी को बढ़ा रही है। जिस उम्र में युवाओं को रोजगार संबंधी जानकारी और घर-परिवार की ओर ध्‍यान देने की ज़रूरत होती है। उस उम्र का प्रयोग राजनीतिक पार्टियों की कठपुतली बनकर करते हैं।

युवाओं का उपयोग राजनेता व्‍यक्तिगत स्‍वार्थ के लिए तो करते ही हैं। साथ ही युवा राजनीति से भटक चुके हैं, युवाओं को राजनीति में धरना प्रदर्शन के अलावा कुछ नज़र नहीं आता। कुछ छात्र संगठन का तो हाल ये है कि छोटे-मोटे काम जैसे परीक्षा के समय पेपर लीक करवाना, चुनाव के समय शराब बंटवाना और मोहल्‍ले में दल-बल के साथ मारपीट करना और फिर संगठन को चलाने वाले नेता से फोन पर कानूनी मदद की पेशकश की जाती है। और बात जब यहां तक न बने तो दूसरी पार्टियों के युवा संगठन से मिल जाते हैं, और पूर्व संगठन पार्टी के विरोधी होते हैं।
सभी थानों में एक नज़र डालें तो फाइलों की संख्‍या में राजनीतिक युवाओं का नाम अधिक आता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस कदर युवा बहक गए हैं। जो अपराध करने में अपना समय बि‍ताते हैं। जिसकी शुरूआत, महाविद्यालयीन छात्रसंघ चुनाव से ही हो जाती है, पढ़ने के समय राजनीति की शुरूआत हो जाती है। कुछ छात्र तो कॉलेज से पढ़ने के बाद सांसद, विधायक, महापौर, पार्षद और सरपंच बन जाते हैं। फिर भी युवाओं में बेरोजगारी को लेकर बहस होते रहती है। पिछले 30 सालों से राजधानी रायपुर के दुर्गा महाविद्यालय से अनेक छात्र नेता महत्‍वपूर्ण पदों पर आसीन हुए हैं। फिर भी युवाओं में बेरोजगारी दूर नहीं हुई है।

छत्‍तीसगढ़ में युवा बेरोजगारों की संख्‍या इस कदर हावी हो चुकी है, कि वो कुछ पैसों के लिए बड़े-बड़े कारनामे कर सकती है। दूसरों के जान की को नहीं होती। ये छत्‍तीसगढ़ का सौभाग्‍य है कि कोई बड़ी घटना युवा बेरोगारों ने अब तक नहीं की। पर ये कब तक चलेगा। जिस दिन बेरोजगारी और बढ़ जाएगी। छत्‍तीसगढ़ में दिल्‍ली के धमाकों की आवाज़ आएगी।

Friday, September 26, 2008

एक सच्चाई ये भी है छत्तीसगढ़ की ?


नक्सलियों के नाम पर बस्तर के मूल निवासियों के साथ छलावा किया जा रहा है। कभी नक्सली होने के साजिश के साथ तो कभी नक्सली सहयोगी होने के नाम पर आदिवासीयों की हत्या की जा रही है। जब इससे भी बात ना बने तो सलवा जुडूम के विरोधी होने का पर्चा लगाकर हत्याएं की जा रही है। छत्तीसगढ़ के मूल आदीवासीयों के लिए अब तों मुसीबत यहां तक बन चुकी हैं। कि सलवा जुडूम के नाम पर राजनीति की जा रही है, जून 2005 से सलवा जुडूम अभियान की शुरूआत आदिवासीयों के लिए किसी श्राप से कम नही। इस अभियान की शुरूआत से ही जाने गई ,जिससे डर कर आदिवासी अपना बसेरा सलवा जुडूम कैंप मे रहने लगे है जान गंवाने मे सभी जिलों से आगे है आदिवासी,,,,

नक्सलीयों का विकास कहे या छत्तीसगढ़ का ? ये तो कह नही सकते , मगर इतना जरूर कह सकते है कि आदिवासी अपने तीर-धनुष से यह लडाई जिसे शहरवासी नक्सली प्रकोप कहते है नही जीत पाएंगे। और ना ही कभी सेना के जवान और बटालियन जंगल मे घुसने की जरूरत करते है। यह सच्चाई अब पूरे प्रदेशवासियों को पता चल चुका है। कि किस प्रकार भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए किराए पर लिए हेलिकाप्टर का कोई सबूत ही नही मिल पाया है जो 3 अगस्त को आंध्रपदेश से छत्तीसगढ़ राजनाथ सिंह के लिए लाया जा रहा था। जब छत्तीसगढ़ मे लंबे चौडे आसमान के उंचाई से दिखने वाले हेलिकाप्टर का पता नही चला तो हम कैसे कह सकते है कि साढे 5 फ़ुट के आदिवासीयों की रक्षा कैंप के बहाने की जा सकती हैं।नाममात्र के बचाव से बचने के लिए छत्तीसगढ़ प्रदेश में चौकसी बढाई के नाम पर ठगी हो रही है टेलीविजन का भी भरपूर साथ मिल रहा है। प्रदेश के भावी पत्रकार नाममात्र की पत्रकारीता के साथ प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर पत्रकारीता करते है। उन्हे पत्रकारीता के बजाय डी.जी.पी., गृहमंत्री, और मुख्यमंत्री के साथ चाय कॉफी पीने मे ज्यादा मजा आता है।

प्रदेश मे आदिवासीयों की पीड़ा को समझने वाले की कोई कमी नही हैं। और ना ही एन.जी.ओ. की,। इन सब सुविधाओं के होने के बावजूद भी नक्सली दर्द और आदिवासी दर्द के वकालत करने मे बढ़ोत्तरी हुई है। स्थानीय नेता के सलवा जुडूम की आगाज के बाद आदिवासीयों को मिलने वाली सुविधा मे कैंप और सरेराह मौत भी मिली है। अब ना तो आदिवासी अपने घर जा सकते हैं। और ना ही पशु जैसे कैंप के चार दिवारी में रह सकते है। स्थानीय जनजातियो के लिए हत्या और आत्महत्या के बीच की नौबत आ चुकी है।

Thursday, September 25, 2008

छत्तीसगढ़ में परिसीमन के बहाने भाजपा सरकार

हाथ में त्रिशूल ,दिल में बदले का भाव , गुस्से के रूप में हिन्दुत्व के दुश्मनों का खात्मा करना और लक्ष्य भारत में हिंदूओं की रक्षा करना । यह कोई चुनावी मुध्दा नही और ना ही किसी राजनीतिक पार्टी का घोषण्ाा पत्र पढ़ा जा रहा है। ये हिंदूत्व की रक्षा के लिए बनाएं गाएं बजरंग दल की तारीफ है जिसे बंद करने की योजनाएं बनाई जा रही है बजरंग दल की पार्टी एक धर्म विशेष की पार्टी है जो भागवान की आस्था के साथ लोगों को अपनी पार्टी में जोडते है। इसका एक बडा फायदा भारतीय जनता पार्टी को भी जाता है जो की हिंदूत्व के मुध्दे पर चनाव लड़ते है

ये हिदूत्व की रक्षा के लिए बनाएं गाए पार्टी है इस प्रकार हर धर्म के लिए ठेकेदार नैतात है जो अपनी धर्म की रक्षा के लिए दूसरो पर आत्याचार करते है? गलती कोई भी करे धार्मिक स्थलों को ही निशाना बनाया जाता है चाहे वह हिंदूओ के अक्षरधाम मंदिर की हो या कनार्टक के चर्च मे हुई तोड़फोड ?या फिर दिल्ली में हुए बम धमाके मे सिमी जैसे मुस्लिम संगठन का हाथ ? इसमें कितने हिंदूओ की मौत होती है या कितने मुस्लिम ,ईसाई ,सिख मारे जाते है यह कोई नही देखता ? धार्मिक स्थलो को नुकसान पहूंचाना पहली प्राथमिकता होती है। इन सबके बढ़ने के पीछें लोकतांत्रिक देश मे राजनीतिक पार्टी को ही दोष दिया जा सकता है। और यही सच्चाई है ,धर्म से राजनीति का गहरा ताल्लुक रहा है और इसी ताल्लुकाना रिश्तें का गलत अपयोग होते रहता है हिंदूत्व के नाम पर राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी के एकाएक शुर बदल जाते है और मुस्लिम वोट बैंक जिसकी आबादी मात्र 2 प्रतिशत है उसको रिझाने के लिए अब्दुल कलाम जैसे मुस्लिम राष्ट्रपति का हवाला दिया जाता है वही गुजरात जैसे प्रदेश में भाजपा मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हिंदुत्व के मुध्दे पर चुनाव लडती है और अन्य धर्म के लोगों को देशद्रोही और आतंकवादी कहने से नही चुकते अब मोदी जी ही बताएं की किस धर्म विशेष के लोग आतंकवादी बनती है?
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव होने वाले है और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है यहां भी अनेक भाजपा के संघटन है जो जातिगत मुध्दे पर चुनाव लड़ती है और परिसीमन से समीकरण बिगड़ चुका है ऐसे समय मे लंबे समय तक मुध्दे बदलने वाली भाजपा एक नये मुध्दे के साथ फिर धोखे में रख सकती है मेरा व्यक्तिगत मुध्दा कुछ नही मगर आधे-अधूरे योजनाओं के बाद चुनाव की योजनाएं बनाना ,साथ ही पांच साल के कार्यकाल के बाद योजना अधूरा होना एक बड़ा मुध्दा है जो राजनीतिक पार्टीयां नहीं उठा सकती ,इसके लिए आम जनता को जागरूक होना पडेगा इसके लिए पत्रकारो को ईमानदार होना पडेग़ा लोकतांत्रिक देश मे लोकतंत्र को मजबूत बनाना पडेगा ?

Wednesday, September 24, 2008

छत्‍तीसगढ़ के क्षेत्रीय पार्टी में बढ़ता क्षेत्रवाद


छत्‍तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीटो के लिए अधिकांश पार्टी ने प्रत्‍या‍शियों के नाम की घोषणा कर दी है। दूसरी बार हो रहे छत्‍तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की तैयारियां को लेकर पार्टियों में काफी उत्‍साह है। पर सोचने वाली बात ये है कि महाराष्‍ट्र नवनिर्माण पार्टी के प्रमुख राज ठाकरे के बढ़ते क्षेत्रवाद के विचारधारा का असर भी छत्‍तीसगढ़ के पार्टियों में देखने को मिल रही है। हाल ही में कई पार्टियों का गठन हो चुका है। और कुछ राजनेता नई पार्टियां गठन करने की योजना बना रही है। जो छत्‍तीसगढि़या सबले बढि़या वाले मानवतावादी नारा उपयोग करने के बजाय जो छत्‍तीसगढ़ की बात करेगा वो छत्‍तीसगढ़ में राज करेगा, जैसे उत्‍तेजनात्‍मक नारों का का प्रयोग कर रहे हैं। जिससे 'छत्‍तीसगढ़ में राज करेगा' जैसे शब्‍द राज ठाकरे की बिहारियों के प्रति आक्रोश को प्रदर्शित कर रही है। आए दिन राजधानी रायपुर में छत्‍तीसगढ़ी हित में बात करने वाले रा‍जनीतिक पार्टियां प्रेस कांफ्रेंस लेने लगे हैं जो यह कहते हैं कि जब तमिलनाडु में तमिल, बंगाल में बंगाली, गुजरात में गुजराती, पंजाब में पंजाबी, उड़ीसा में उडि़या राज करते हैं तो सामान्‍य न्‍याय के मुताबिक छत्‍तीसगढ़ में छत्‍तीसगढि़या राज होना चाहिए। ये राजनीति मुद्दा कोई नया नहीं है। नंद कुमार साय (भूतपूर्व नेताप्रतिपक्ष) ने भी इससे पहले छत्‍तीसगढि़या की जगह आदिवासी मुख्‍यमंत्री बनाने की मांग उठाई थी। हाल ही में छत्‍तीसगढ़ विकास पार्टी छत्‍तीसगढिया मुख्‍यमंत्री बनाने की घोषणा और 1750 रूपया वोटर पेंशन देने की बात कह चुके हैं। छत्‍तीसगढ़ प्रदेश में जातिगत भेदभाव से ऊपर उठकर और सर्वजनों के हित में घोषणा करने वाली झूठी पार्टियां अपना चेहरा छुपा रही है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रतिनिधि आम चुनाव से ही चुना जाता है। जो भारत देश के लिए गौरव की बात है परंतु जातिगत क्षेत्रवाद का मुद्दा किसी राज्‍य की जनता के लिए फायदेमंद हो सकता है। लेकिन भारत जैसे विकासशील देश में ये मुद्दा राष्‍ट्र के विकास में ज़रूर बाधा उत्‍पन्‍न कर सकती है।

Monday, September 22, 2008

मुख्यमंत्री चखना सेंटर 5 रू. मा

छत्तीसगढ़ ला राज्य बने 8 साल हो गे हे। अउ रमन सरकार ला घलौ पांच साल होवत आए हे। अब 5 ह बड़े हे त 3 साल के जोगी सरकार ल भुलाए के 5 साल वाला रमन सरकार के बात ल करबो। छत्तीसगढ़िया मन बर रमन सरकार ह अब्बड़अकन खुशहाली लाइस हवै, अउ ओकर कहात ले गांव गरीब अउ किसान लागे हे। हमरा डोकरा मन बोलथे कि सब्बो-सब्बो नेवता ठलाहा मन बर अउ लबरहा मन बर रमन जी ह देथे। हमर बर तो सोचबे नइ करे। डोकरा मेर पूछे ल बताथे कि 5 रू. मा जेन अन्नपूर्णा दाल भात योजना रखे हे ओ काबर नइ चलिस।

सियान के बात मा सोचेओं अउ परन दिन के जुन्ना पेपर ल पढ़ेंव त ओमा छत्तीसगढ़िया मन के आत्महत्या, हत्या, चोरी, लूट अउ अब्बड़अकन ख़बर रहिसे। जो ओमा एक ठन खबर छत्तीसगढ़ ब्रेवरेजस कार्पोरेशन के अध्यक्ष सच्चिदानंद उपासने के रहिसे। जेमा ओखर गोठ ल सुनेव त लगिस कि अतका पैसा दारू पिएबर कहाँ ले आइस। अध्यक्ष के गोठ हेवै कि छत्तीसगढ़ ह दारू पिए म तीसरा पारी म हावै। अउ अइसने चलही त पारी ह बढ़ सकत हे। अगर दारू पिए म तीसरा नंबर आए त दारू पिके खवइया मन ह का खाए होही। अभी पियइय्या मन देखबे त पिए के बाद खाना नइ खाए। त फेर दारू ह पेट म रेहे रिथे। अउ कई झन त मर घलौ जाथे। दारू पिए के बाद कतकौ झन मर घलौ गे।

सियान मन के गोठ घलौ सही हे। अब्बड़ दारू पिए ल आदमी मर जाथे। त हमार सरकार ऊपर दाग नइ आना चाहि। तेखर बर सियान मन सोचे हे कि रमन सिंह कना जाबौ। अउ 5 रूपया म चखना दारू के साथ देके माल ल उठाबौ। एखर से फायदा ये हवै कि दाल-भात सेंटर के जगह म दारू पिही अउ चखना खाही। दारू पिए म तीसरा पारी त हावै। दारू पिके जिइय्या मन के पारी घलौ बढ़ जाहि। एखर बर छत्तीसगढ़ सरकार ला चखना सेंटर खुलवाना ज़रूरी हवै। दारू पिए के बाद चखना खाही, अउ ओलंपिक जाके गोल्ड मेडल लाहि।
त फेर अगला सरकार ह 5 रू. मा चखना सेंटर ज़रूर खुलवाही। यही छत्तीसगढ़ के बड़ई हरे अउ नवां-नवां योजना सरकार के लाबौ। त फेर छत्तीसगढ़ म बने सरकार लाबौ। त सबो पियइय्या मन ला वोट डाले के नेवता आहे। जब चुनाव आहि चखना सेंटर खुलवइय्या मन ला वोट देहू। जय छत्तीसगढ़

आस्था के साथ खिलवाड़ में श्रध्दालु कौन ?


10 दिनों तक राजधानी में गणेश उत्सव की धूम रही। भव्य पंडाल के साथ प्रतिमाएँ लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनी रही। जिससें दुरूस्त अंचलों के लोग भी गणेश उत्सव का आनंद उठाने मेंे पीछे नहीं रहे। इसके साथ ही पितृपक्ष के पहले विसर्जन का दौर शुरू हो गया विसर्जन झाँकी की परंपरा की शुरूआत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने विभिन्न संप्रदाय के लोगों का संगठन बनाने और अंग्रेजों के खिलाफ षडयंत्र रचने के लिए की। तिलक जी का उद्देश्य समाज में फैले अराजकता के साथ-साथ समाज को नैतिक रूप से शिक्षित करना था। परंतु बदलते दौर के साथ-साथ गणेश उत्सव का स्वरूप ही बदल गया। और विसर्जन करने की परंपरा भी।

अब गणेश उत्सव के शुरू होते ही विसर्जन की तैयारियाँ शुरू होने लगती है। गणेश प्रतिमाओं का विचित्र स्वरूप अनेकों पण्डालों पर देखने को मिलती है। कुछ लोग गणेश प्र्रतिमाओं को श्रध्दा की नज़र से न देखकर दोस्त, यार, मित्र और न जाने किस-किस नज़र से ये उत्सव मनाते हैं। प्रथम देव देवताओं के रूप में पूजे जाने वाले श्री गणेश को इस कलयुगी संसार में खिलौने जैसा रूप दे दिया है। जो व्यक्ति की इच्छा के अनुसार रूप बदलती है और लोगों की भीड़ जुटाने के लिए अपनी मर्यादाओं को भी लांघ देते हैं। बची-खुची कसर अंतिम दिन विसर्जन के समय देखने को मिलती है। जब विसर्जन के समय फिल्मी गानों पर लचकते हुए बदन को देखकर लड़के-लड़कियाँ अपने त्यौहार को मस्ती का रूप दे देती है। प्रतिमाओं का खंडन होना या किसी की आस्था के साथ खेलना भविष्य में गणेश उत्सव को एक नए रूप में रख रही है।

तिलक जी का गणेश उत्सव और राजधानी के गणेश उत्सव में काफी अंतर आ चुका है। तिलकजी का उद्देश्य समाज को सुव्यवस्थित ढंग से चलाना था। वहीं राजधानी के गणेश उत्सव समिति के सदस्य सभी सीमाओं को लांघकर सुनियोजित ढंग से उत्सव की तैयारियां कर रहे हैं। राजधानी में प्रतिवर्ष पितृपक्ष में ही झाँकी विसर्जित की जाती है। इसका एक बड़ा कारण ये भी है कि आसपास के सभी ज़िलों की झाँकियां राजधानीवासियों के लिए लाई जाती है। मगर किसी कारण के लिए अपनी आस्था एवं परंपरा के साथ खिलवाड़ करना गणेश उत्सव को शोभा नहीं देती। राजधानी वासियों में गणेश उत्सव को लेकर कितनी श्रध्दा है ये गणेश प्रतिमाओं को बेरहमी से नगर प्रशासन की सहायता से विसर्जित करते समय देखा जा सकता है।

जिस समाज को संगठित करने के लिए तिलकजी ने प्रयास किए वही समाज उनकी परंपराओं को तोड़ रहा है।अंतिम दिन कचरे साफ करने वाली गाड़ी को विसर्जन के लिए लगाएं गाएं है। जिससे कि महानदी के बहाव में बाधा ना पहुंचे। प्रशासन से लेकर आम दर्शक अपनी आस्था की परवाह किएं बिना इस उत्सव को भव्य रूप देना चाहता है
परंतु क्या वास्तव में किसी की आस्था के साथ खिलवाड़ करके श्रध्दालू होने का दुस्साहस बहादुरी नहीं है? पितृपक्ष में किसी अत्सव का मनाना और गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन करना क्या कहें.....................................................

Wednesday, September 10, 2008

धर्म क्या है पहले पहचानिएं फिर धर्मांतरण की बात करिए ?



दो घटनाओ ने मेरा ध्यान किसी सम्प्रदाय के विरोध में लिखने को मजबूर कर दिया, पहली घटना सरायपाली के ग्राम खोखेपुर में दलित उत्पीडन की है जिसमे वहा के 20 प्रतिशत दलितों को प्रताडित कर मारपीट किया गया और घर के अंदर बंद कर जलाने का प्रयास किया गया यह बात सिर्फ एक गांव की ही नही छत्तीसगढ के अनेको गांव में इस प्रकार की घटना होती रहती है मगर कोई संस्था खुलकर बोलने की हिम्मत नही करता जब तक उसे कोई फायदा न हो, सरायपाली की इस घटना ने दलितों को डर-डर के जीने को मजबूर कर दिया है और इस गांव मे भेदभाव छुआछुत होने से दलितों का जीना मुश्किल हो गया है

दूसरी घटना रायपूर होलीक्रास स्कूल की है जिसमे धर्म के ठेकेदारों ने स्कूल की शिक्षा व्यवस्था के बजाय छात्रों की बाइक पर लगे स्टीकर पर विरोध जताया है इन धर्म के ठेकेदारों का आरोप है कि मिशनरी स्कूल छात्रो को स्टीकर के बहाने धर्मांतरण के लिए प्रेरित कर रही है जिससे हिंदू धर्म को खतरा है ये रायपुर राजधानी मे पहली बार नही हुआ ब्लकि इसाइयों पर लगातार धर्मांतरण का आरोप लगता आया है और किसी न किसी प्रकार से इसाइयों को मानसिक रूप से प्रताडित किया जाता है।

मेरा ज्ञान कम जरूर हो सकता है परंतू मैने अपने स्कूल मे वसूधैव
कुटूम्बकम, अनेकता मे एकता और हिंदू मूस्लिम सिख इसाई हम सब भाई-भाई जैसे अध्याय का अध्ययन किया और जब फिर दलितों के मसीहा और हिंदू धर्म को कलंक कहने वाले तथा बडी संखया में धर्मांतरण करने वाले बाबा साहेब के जीवनकाल की घटना का अध्ययन किया तो धर्मांतरण करने की मजबूरी (प्रेरणा) धर्म एवं समाज मे फैली इसी छूआछूत की भावना से मिलती है।
अपने आप को हिंदू कहना और ब्राम्हणवाद के मनुवादी शास्त्रों के लिए दलितों को प्रताडित करना इसी हिंदूस्तान की रीत है जो शूद्रों को हिंदू होने का दर्जा ही नहीं धर्मांतरण विरोधी होने का दर्जा भी दिलाती है भारत को हिंदूस्तान कहने वालें आज भी कोई कसर नहीं छोडते और न ही भेदभाव-छूआछूत को बढावा देने से कतराते है और तब दलितों के पक्ष मे कोई धर्म के ठेकेदारो ध्दारा कार्यवाही नही की जाती इन ठेकेदारों को अपने धर्म के बजाय इसाई मिशनरीयों का धर्मांतरण प्रचार चुभता है गांव शहर मे इस प्रकार की घटना आम है मेरे कलम घिसाने में भी मेरी हिंदूवादी सभ्यता आडे आती है कही धर्म के ठेकेदार यहां भी न हो और मेरे हिंदू होने पर सवालिया निशान उठाएं इसलिए मेरी मजबूरी आधे मे ही दम तोंड रही है अगर मेरे नये सहयोगियो का साथ मिला तो आगे ज्यादा और पूरी कलम घिसूंगा