Wednesday, October 8, 2008

और फिर गरीब की झोपड़ी से ?





मैं एक सामान्य इंसान से मिला जिसे बॉलीवुड की विचित्र दुनिया मे स्वयं सहायक भूमिका के साथ लाखों बुराइयों के बावजूद प्यार करते हुए दिखाया गया ,क्या वास्तव मे वह गांधी जी थे या फिर कोई और लेकिन जब शहर की गलियों मे एक प्रभावशाली व्यक्तित्व की तलाश करते घूमा तों कांसे मे ढले सार्वजनिक पार्क मे सरकारी संस्थानो के बाहर अकेले खडे कुछ सोंच रहे थे देखते ही देखते भारतीय रिजर्व बैंक के करेंसी नोट पर उनकी फोटो छपी थी
मझोले कद का वह व्यक्ति , छरहरा बदन, चश्मा पहने व लम्बी लाठी लिए, सफेद धोती बांधे अपने ढंग की पुरानी सी विशेष घड़ी के साथ पता नही चौराहे पर क्यो खडे है वहां खडें कुछ बुजूर्गो ने कहा की ये हमारे आदर्श पुरूष है और अंग्रेज इनसे डरकर भाग गए।1947 की आजादी मे इनका महत्तवपूर्ण योगदान था। (लेकिन कैसी आजादी ? )

अमीर धरती मे कुछ गरीबों के लिए भी सोंचा जाता है ऐसे ही एक राजनीतिक पार्टी के स्लोगन मे नजर गई ,, कांग्रेस का हाथ गरीब के साथ ,, भाजपा सरकार गांव गरीब और किसान की सरकार ,,जो बहूजन की बात करेगा,,,-और भी राजनीतिक पार्टिया गरीबो का साथ देने की बात करते नजर आयी ,पर गरीब कहा रहते है ?

गरीबों के आदर्श व्यक्तित्व की तलाश करते मेरी नजर ने एक अन्य उपस्थिति दर्ज की वह थी नीला सूट काली टाई व मोटे फ्रेम का चश्मा लगाए और अपने बॉये हाथ से कलेजे पर लगायी एक पुस्तक के साथ खड़ा -वह व्यक्ति ? मैने उसे दलितों के बीच हर जगह पाया ,पता नही लगा पाया की संविधान निर्माता वाकई डॉ. भीमराव अम्बेडकर हैं जब तक की दलितों की एक टोली से मेरी मुलाकात नही हुयीं इनका रूपचित्र उनकी दीवारों पर लगा और उनके शब्द उनके होंठों पे हावी,,,,

मेरे मन में विचार आया कि क्या एक धोती धारी और एक कोट धारी महापुरूषो को भी अमीरी और गरीबी ने बांट दिया तभी दलितों के बीच एक बूढ़ी औरत ने पूछा की - बेटा क्या पूरे विश्व मे गांधी जैसे अंबेडकर भी मशहूर है। मै फिर ? ? ? ? ?

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

बह्त ही सुन्दर लिखा है आप नै, अब क्या है हर तरफ़ रावण ही रावण है, क्या करेगा एक गरीब गांधी बेगानो से तो लडलिया अब अपनो को कहां खदेडे???
धन्यवाद

Anil Pusadkar said...

बढिया जितेन्द्र अब सही लाइन पर आये हो।बढिया लिखा,आपको दशहरे की बधाई और हां ये वर्ड वेरिफ़िकेशन ्का टैग हटा दो।