Wednesday, January 7, 2009

ताराचंद छत्‍तीसगढिया बनाम प्रेमप्रकाश बिहारी

छत्‍तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा के दिग्‍गजों की हार से आलाकमान को कार्यवाही करने के लिए मजबूर होना पड़ा। भिलाई विधानसभा से पूर्व विधानसभा अध्‍यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्‍डे को हराने के लिए भाजपा सांसद ताराचंद साहू पर कार्यवाही कर उन्‍हें पार्टी से निष्‍कासित कर दिया गया। पार्टी से निष्‍कासित होने के बाद भाजपा सांसद ताराचंद साहू के तेवर नरम नहीं पड़े बल्कि और ज्‍यादा गर्म हो गए हैं। जो बात भिलाई तक सीमित थी। अब निष्‍कासन के पश्‍चात पूरे प्रदेश में फैल गई कि छत्‍तीसगढि़यों की अस्मिता को समझने के लिए छत्‍तीसगढ़ में छत्‍तीसगढ़ी प्रत्‍या‍शी और जनता का प्रिय होना ज़रूरी है।

मुद्दा वही पुराना है। जब महाराष्‍ट्र में बिहारियों पर लाठी बरस रहे थे। तो वहीं छत्‍तीसगढ़ में भी अस्मिता के लिए सांसद ताराचंद साहू और उनके समर्थकों ने भिलाई के बिहारी नेता (पूर्व विधानसभा अध्‍यक्ष) प्रेमप्रकाश पाण्‍डे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और देखते ही देखते बात मारपीट तक पहुंच गई है। जो कि आज तक चल रही है। छत्‍तीसगढ़ प्रदेश एक औद्योगिक क्षेत्र है। जहां अधिकतर रोजगार बिहारियों को और दक्षिण भारतीयों को मिला है। जहां भिलाई की कहें तो छोटा बिहार के नाम से भी जाना जाता है। ये मुद्दा क्षेत्रवाद का नहीं है, लेकिन स्‍थानीय निवासियों को हीन-भावना से देखना और बिहार के लोगों को भिलाई में रोजगार दिलाने जैसे कार्य को लंबे समय से प्रेमप्रकाश पाण्‍डे करते आ रहे हैं। छत्‍तीसगढियों को डरा-धमकाकर अपने रिश्‍तेदारों, पहचानवालों को इस्‍पात संयंत्र में रोजगार दिलाने जैसी बात लंबे समय से चल रहा है। चूंकि पाण्‍डे जी इस्‍पात संयंत्र के अध्‍यक्ष भी थे जिनकी पहचान वरिष्‍ठ अधिकारियों से भी थी। जो छत्‍तीसगढियों के शोषण के लिए बहुत था। समय बीतने के साथ अधिकतर बिहारियों का दमन भिलाई के छत्‍तीसगढियों के खिलाफ बढ़ता गया। महाराष्‍ट्र की घटना ने छत्‍तीसगढियों की नींद उड़ा दी और अपने हक के लिए भिलाई निवासी शक्ति प्रदर्शन (मारपीट) करने से नहीं चूके।
राजठाकरे की भूमिका ने भले ही महाराष्‍ट्र में आग लगाई है लेकिन छत्‍तीसगढ़ में भी इसका असर देखा गया और छत्‍तीसगढिया बिहारियों के वर्चस्‍व ने लड़ाई के लिए विवश किया। मुझे ज्‍़यादा जानकारी बिहारियों के बारे में नहीं था। लेकिन भिलाई जाने पर पता चला कि छत्‍तीसगढ़ के मूल निवासी झोपड़ी में और बिहारी बड़ी मंजिलों में रहते हैं इसका मुख्‍य कारण बिहारियों की असलियत सामने लाती है। मगर सोचने के लिए प्रेरित करने वाला वाक्‍या ये है कि क्‍या पूरे प्रदेश में बिहारी ऐसे ही हैं या फिर बिहार के लोग ही ऐसा करते हैं। पूरे प्रदेश का तो पता नहीं लेकिन फिलहाल सांसद और पूर्व विधायक के बीच छत्‍तीसगढियों और बिहारियों के वर्चस्‍व की लड़ाई भाजपा ने सांसद ताराचंद साहू के निष्‍कासन से शुरू कर दिया है। और आगे चलकर इसका परिणाम भी मिल सकता है। लेकिन बिहारियों का भविष्‍य छत्‍तीसगढ़ में ? ? ?

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