Sunday, February 1, 2009

क्‍या होगा हम हिन्‍दुओं का.....।

बसंत पंचमी पर्व भारत में अपना विशेष महत्‍व रखता है। क्‍योंकि इसी दिन से बसंत रितु की शुरूआत होती है। लंबे समय से ज्ञान की देवी सरस्‍वती मां की पूजा-अर्चना की जाती रही है, जो आज भी चल रही है। जो कि स्‍कूलों-कॉलेजों में बड़े रूप में मनाए जाते हैं। हिन्‍दू धर्म में सरस्‍वती माता को ज्ञान की देवी भी कहा जाता है। हिन्‍दू होने के नाते मुझे गर्व होने के बजाय ये सवाल मन में है कि आखिर हिन्‍दू देवी-देवताओं का सम्‍मान कहां पर हो रहा है।
मेरे मोहल्‍ले और कॉलेज में अण्‍डा पेड़ लगाकर पूजा-अर्चना शुरू की गई और तरह-तरह के कार्यक्रमों से दिन को यादगार बनाने की कोशिश भी की गई। हिन्‍दू धर्म के अनुसार ज्ञान की देवी माता सरस्‍वती है। लेकिन क्‍या दूसरे धर्म के लोग भी माता सरस्‍वती को ज्ञान की देवी मानते हैं। मेरे इस प्रश्‍न से अच्‍छे-अच्‍छे विचारों पर विराम लग सकता है। क्‍योंकि अगर सभी धर्म के लोग सरस्‍वती माता को ज्ञान की देवी नहीं मानते। तो फिर मेरे धर्म के लोग सरस्‍वती माता का अपमान खुशी से क्‍यों स्‍वीकार कर रहे हैं। इस मान, सम्‍मान और अपमान की बात के बीच सार्वजनिक जगहों पर पत्‍थर रखकर सिंदूर लगाकर पूजना और फिर देवी-देवताओं को मंदिर के बजाय रोड, गंदगी या फिर किसी भी सार्वजनिक स्‍थानों पर पूजना क्‍या हिन्‍दू धर्म के संस्‍कार हैं। अगर नहीं तो क्‍यों ऐसे काम हिन्‍दुवादी विचारधारा वाले कर रहे हैं। क्‍या सिर्फ पूजा-पाठ, यज्ञ करने से ही धर्म की सर्वोच्‍च्‍ाता बढ़ती है।
मेरे विश्‍वविद्यालय में बसंत पंचमी पर सरस्‍वती पूजा और हवन कार्यक्रम आयोजित की गई और सभी छात्रों ने हिस्‍सेदारी भी निभाई, सिवाय मेरे........... । मेरे पूजा-पाठ में शामिल नहीं होने पर मेरे मित्र तरह-तरह की धारणाएं बनाने लगे। कुछ मित्रों ने मुझे कहा कि क्‍यों हिन्‍दू धर्म में रहने का इरादा नहीं है क्‍या पापी। तो कुछ छात्रों ने आतंकवादी कहकर संबोधित किया। पत्रकारिता के छात्रों के इस कृत्‍य पर हंसी तो आई लेकिन बसंत पंचमी की‍फिकर करके मैं चुप हो गया। कुछ अन्‍य धर्म के मित्र मेरे साथ लाइब्रेरी में बैठे बोलने लगे कि अरे यार तेरे धर्म में देवी-देवताओं को सार्वजनिक जगह में पूजने का क्‍या अर्थ, इनका स्‍थान तो मंदिर में होना चाहिए। कुछ देर तक मैं चुप बैठा लेकिन वास्‍तव में मुझे अपने धर्म में रहकर अपने ही हिन्‍दू धर्म के लोगों पर गुस्‍सा भी आया। चूंकि हिन्‍दू धर्म पहले से ही वर्ण-व्‍यवस्‍था से घिरी हुई है, जिसमें शुद्रों की स्थिति दयनीय है। हिन्‍दू धर्म में ब्राह्मण वर्ग का श्रेष्‍ठ होना और धर्म को बदनाम करने की साजिश क्‍या वास्‍तव में उच्‍च वर्णों के हाथ में है।
ब्राह्मणवाद को लेकर मुझे कोई शिकायत नहीं है। शिकायत तो मुझे हिन्‍दू देवी-देवताओं का सार्वजनिक जगहों में पूजने पर है। हिन्‍दू धर्म के अलावा किसी भी धर्म के लोग अपने ईश्‍वर के साथ इतनी ज्‍यादती नहीं करते सिवाय हिन्‍दू धर्म के। मार्क्‍स के विचार कि राष्‍ट्र के विकास में धर्म अफीम है। इसके बावजूद भी क्‍या देश में हिन्‍दू देवी-देवताओं का और हिन्‍दू धर्म का हित हो पाएगा।

5 comments:

Arun Arora said...

लेकिन क्‍या दूसरे धर्म के लोग भी माता सरस्‍वती को ज्ञान की देवी मानते हैं।पहले आप खुद से पूछिये कि क्या बाकी सारे कार्य भी आप ये देख कर करते है कि दूसरा करता है या नही ?
जिसमें शुद्रों की स्थिति दयनीय है। हिन्‍दू धर्म में ब्राह्मण वर्ग का श्रेष्‍ठ होना और धर्म को बदनाम करने की साजिश क्‍या वास्‍तव में उच्‍च वर्णों के हाथ में है।
आपके स्कूल मे हो रही पूजा मे क्या किसी से की वोह किस वर्ण से पूछा जा रहा था ? नही फ़िर आप काहे यह पर वर्ण व्यव्स्था के अवगुण गिना रहे है
दिक्कत ये है कि सम्स्या आपके दिमाग मे है और कही नही आप खुद को सेकुलर बताने के चक्कर मे इस प्रकार के कार्य कर रहे है यानी खुद से छल कर रहे है तभि आप इस सामान्य से कार्य मे प्रपंच ढूढ रहे है महानुभाव
हिन्‍दू धर्म के अलावा किसी भी धर्म के लोग अपने ईश्‍वर के साथ इतनी ज्‍यादती नहीं करते सिवाय हिन्‍दू धर्म के। मार्क्‍स के विचार कि राष्‍ट्र के विकास में धर्म अफीम है।
इस बात का जवाब ये है कि आप छिद्रानवेशी है आप ने और किस धर्म को देखा या जिया है ?
मुस्लिम समुदाय मे अल्लाह के सिवा और किसी का नाम लेना गुनाह है वो नमाज सडक पर अता करते आपको अक्सर दिख जायेगे उसके बारे मे आपके क्या रौशन ख्याल है जी ?
काल मार्क्स की बात करते है जनाब आप जरा सोचिये आज माक्सवादी खुद मार्क्सवाद के नशे मे अफ़ीम छोडिये जी हिरोईन से ज्यादा धुत है जनाब किस दुनिया मे है आप . या फ़िर आप आज के इन महान पत्रकारो की तरह सिर्फ़ प्रपंच खडा करने की ट्रेनिंग लेने मे लगे है जनाबे आली

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

मैने तो सोचा था आप कुछ विचारपूर्ण बात लिखे हैं जी.

शैलेश चंद्रप्रवीर said...

प्रिय मित्र,

आपके विचार और आपकी वैचारिकता देख मुझे आपसे सहानुभूति है. आप संभवतः ग़लत दिशा में अपनी जीवन की पटकथा लिखने का प्रयास कर रहे हैं. आज के माहोल में जैसे दो-टकिया पत्रकार हर गली-मुहल्ले उभर आए हैं और पत्रकारिता को अपनी हतबुद्धि प्रयोगों से शर्मसार कर रहे हैं - यदि आप का उद्देश्य उन्ही में एक बनने का है तो अपना कार्य जारी रखें अन्यथा आप जैसे नौजवानों का भविष्य अन्य क्षेत्रों में बेहतर है.

sarita argarey said...

मुझे तो लगता है कि आप जल्दी ही एनडीटीवी या आई बी एन में नौकरी पा जाएंगे । बुद्धिजीवी????? किस्म के पत्रकार बन बडे बडे पुरस्कार हथियाने में भी कामयाब रहेंगे । अग्रिम बधाई .....! वैसे अतिक्रमण कर ज़मीन कब्ज़ाने के खिलाफ़ मैं भी हूं । आस्था व्यवहार और आचार से प्रकट होना चाहिए । आडंबर से नहीं ।

संगीता पुरी said...

मेरे ख्‍याल से परंपरागत तौर पर सार्वजनिक जगहों पर देवी देवताओं की पूजा करने का उददेश्‍य शायद समाज के आपसी मेल जोल को बढावा देना रहा हो....मुझे तो इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती।