आदमी क्या है एक जोडी जूता है़
कोई आदमी जूते की नाप से बाहर नही है
जूते मारने के सिलसिले की शुरूआत भी यही से होती है
चाहे वो राष्ट्रपति हो या गली का बच्चा, जूते की मार पड ही रही है
ये जूता आदमी के नाप का ही है
जिसे जूते नही पडे शायद उसे अपने जूते के नाप का अंदाजा नही है
जूता मार प्रतियोगिता की शुरूआत भले ही एक पत्रकार (मुंतजर अल जैदी्)ने की हो
लेकिन मेरे मोहल्ले मे छुटभैय्ये नेता हमेशा एक नारा लगाया करते थे
कि ------------------ के दलालो को जूते मारो सालों को
कही ये नारा समझने के साथ्ा अभ्यास मे तो नही हो रहा है
अब तो अच्छी क्वालिटी के जूते पहनने पडेंगे क्या पता कल,,,,,,,
मै तो नही मारूंगा लेकिन मेरे जूते से कोई मारे और टी वी वाले उस जूते को दिनभ्ार दिखाएंगे
और विज्ञापन वालो से कमाई भी होगी इसमे आपका क्या इरादा है
Friday, April 10, 2009
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1 comment:
भाई, आदमी मजेदार हो।
जरा यह भी सोचो कि खबर की ऐसी तैसी क्यों होती है?
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