सलवा जुडूम और नक्सली मुठभेड ये दोनो बाते भारत के हर नागरिक जानते है खासकर छत्तीसगढ की पहचान ही नक्सली मुठभेड बन चुकी है सऩ 2005 से सलवा जुडूम की शुरूवात से आज तक पुमिस और नक्सलीयों म़तको की संखया 2005 से ज्यादा पहुंच चुकी है लगातार हो रहे हमले में कभी कुछ हासिल हुई हो तो वह है मौत
लगातार हमले से सरकार ने यहां तक कह दिया कि हम आर पार की लडाई लडेंगे मगर कैसे यह नही बताया नक्सलियों ने सोचा ही नही और आर पार की लडाई शुरू कर दी लगातार एक के बाद एक हमले रोज हो रहे है भला हमले से किसे क्या मिल गया और इसका अंत कितने सालों में होगा ये ना तो मंत्री जी जानते है और ना ही नक्सलियों को मालूम
सलवा जुडूम की स्थापना से लेकर आज तक का समय देख लिया लेकिन छत्तीसगढ के ही निवासियों को समझ नही आया कि नक्सलियों की मांग क्या है उद्देश्य क्या है, मंत्रीजी भी योजनाएं बनाने और योजनाओं की प्राथमिकताओं को पूरा करने का दम भरते है अगर आदिवासी क्षेत्र में योजनाएं पूरी हुई तो हत्याएं क्यों , और नही हुई तो सरकार क्या कर रही है , छ.ग. सरकार इस बार नक्सलियों को ललकार चुकी है आर पार की लडाई लडने की बात कहकर पीछे भी हट गई इसमे सरकार को अगर कहे कि वह अपने उद्धेश्य से भटक चुकी है और नक्सलियों को पहले मारने के लिए उकसा रही है तो कोई गलत नही है,,,
मुझे अपने दोस्तो से मिलने के लिए उनकी मौत का इंतजार करना पडता है मै तो पुलिस नही बन पाया लेकिन पुलिस भर्ती में बहुत सारे दोस्त बने थे जो धीरे धीरे दूर होते जा रहे है मैने अभी तक साथ के तीन दोस्त खोएं है और एक दोस्त अभी भी नक्सलियों से लडाई करने में व्यस्त है लगता है उसकी मौत का इंतजार करना होगा मुझे, क्यो कि सरकार के फरमान से आगे तक नक्सली खत्म नही होंगेा रोज दर्जनो लाशे घर पहुंचाई जा रही है कोई तो अपना उद्धेश्य बताएं जिससे मेरे दोस्तो की मौत रूक सकें, उद्धेश्य और वादो के बीच जवानों की मौत का जिम्मेदार सिर्फ सरकार ही है यह फैसला सच हो सकता है ,,,,
Monday, May 11, 2009
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