Wednesday, January 27, 2010

क्‍या प्रेस क्‍लब में डीजीपी द्धारा प्रायोजित कार्यक्रम होने लगे हैा




ब्‍लॉग जगत के इतिहास में एक और उपलब्धि जुड् गई 24 जनवरी को छ;ग; के ब्‍लागर प्रेस क्‍लब में इक्‍टठे हुए, मै समझ नहीं पाया की आखिर यहां क्‍या हो रहा हैं, फिर मंरी मुलाकात छ;ग; के पहले ब्‍लागर संजीत भैया से हुईा बैठक के बारे में पुछता रहा की अाखिर इस बैठक का उद्धेश्‍य क्‍या है, प्रेस क्‍लब पर एक पत्रकार साथ्‍ाी ने कहां की, डीजीपी ने तुझे भी खरीद लिया क्‍या मैं तपाक से बोला मैं समझा नही यार, उस पत्रकार साथी ने कहा कि प्रशांत भूषण को जानता है ना, उसने मीडिया को बिकाउ कहां मेधा पाटकर और पांडेजी के साथ आएं थे तब कहां,
डीजीपी ने कहां है कि पत्रकारों को संगठित करके प्रशांत भूष्ण जी जो कि पेशे से वकील है के खिलाफ आंदोलन करे, मैनं कहां तुझे ये सब कैसे मालूम पत्रकार साथी ने कहां कि तुझे याद है पुलिस के खिलाफ ब्‍लाग लिखने पर सम्‍मान किया गया था, तब से खासी पट रहीं है मेरे मित्र का इशारा मेरे ब्‍लागर गुरू अनिल पुसदकर जी की ओर था मैं ये सब बातें नजरअंदाज कर संजीत त्रिपाठी जी के साथ कार्यक्रम में पहुचा, छ;ग; के ब्‍लागर एक छत के नीचे पाकर मैं मन ही मन खुश हुआ कि अलग अलग विचार वाले ब्‍लागर साथ में है, लेकिन सच कहु तो मेरा घ्‍यान बिल्‍कुल नहीं लग रहा था, मैं उठकर आ गया मुझे नहीं मालुम कि वहां क्‍या हो रहा था,
मेरा ध्‍यान मेरे ब्‍लागर गुरू पर लगाए गए आरोप पर था मैं बाहर जाकर कुछ मित्रों से मिला कुछ जानने की कोशिश कि, सभी मित्रों का कहना था पत्रकारिता बिकाउ हो चुकी है , विज्ञापन के कारण खबरें नहीं लगती, फोन आने पर खबरों को रोक दिया जाता हैं हमें समझौता करना पड्ता है वेतन भी सही समय पर नहीं मिलता, और पेपर दो रूपया एक रूपया में बिकता हैं, उसी पेपर को छपने में कितना लगता है तुझे मालुम हैं, मैं भी पेशे से पत्रकार हु पर ये आरोप सुनकर इतना ही बोला कि आपकों किसने कहां है पत्रकारिता करने, नही जमता तों दुसरा कर लो, इस बहस के बीच मैं छोड् कर आ गया
लेकिन इतना जरूर कहना चाहुंगा कि पत्रकारिता को कुछ स्‍वार्थी लोग बेच रहे हैं अनिल पुसदकर जी की पत्रकारिता को करीब से जानते है वो ऐसा कभी नहीं कहेंगे पुलिस परिक्रमा जैसं नियमित स्‍तंभ और विधायको की खरीद फरोख्‍त की ख्रबर या इंदिरा बैंक के घोटालें को उजागर कर आरोपी को जेल तक पहुचाने वाले ऐसे पत्रकार पर आरोप लगाकर पता नहीं, ऐसे तथाकथित पत्रकार अपनी पत्रकारिता को किस उंचाई तक पहुंचा रहे है या हो सकता है कि आज के पत्रकार खोजबीन करने में लगे है जो बार बार यही प्रश्‍न पूछते नजर आते है कि हमें प्रेस क्‍लब की सदस्‍यता क्‍यों नहीं मिल रहीं, और क्‍यों अध्‍यक्ष चुनाव नहीं हो रहा हैं बहस के बीच मुद्धा यहीं हैं कि
क्‍या प्रेस क्‍लब में डीजीपी द्धारा प्रायोजित कार्यक्रम होने लगे हैा

2 comments:

सुमो said...

भैय्या किसी बेबकूफ ने कहा होगा कि ये कार्यक्रम प्रायोजित है, आप क्यों इन महामूर्खों की बात पर ध्यान देते हो?

मानवाधिकारवादियों की दुकानें है और इनकी दुकानों के ग्राहक टूटने की बात करोगे तो इनके पेट पर लात पड़ने की बात हो गई, ये तो अपना पेट पीट कर चिल्लयेंगे, रोयेंगे, बुक्का फाड़ेगे,

आप उस पेड़ पर चढे क्यों हो? जरा नीचे उतरो, खुद देखो, आपको खुद इन नक्सलवादियों और इनके चम्मुओं की घिनौनी हरकत पर शर्म आने लगेगी...

जो अपने आने, जाने खाने, "पीने" के लिये दूसरे देशों के फैंके सिक्कों पर आश्रित हो बो किस मुंह से एसा कह पाने की बेशर्मी करते हैं

Sanjeet Tripathi said...

shhh....kuchh to hai..........;)