Friday, January 9, 2009

शिक्षा के क्षेत्र में जातिवाद हावी

भारत को लोकतांत्रिक देश की संज्ञा दी गई है लेकिन लोगों का जीवन लोकतांत्रि‍क देश के अनुकूल नही है यहां हर क्षेत्र में समस्‍या ही समस्‍या है लोगों की समस्‍या के समाधान करने वाले को दबा दिया जाता है और न्‍याय संगत बाते करने पर आरोप जड़ दिए जाते हैं। ये किसी किताब से पढ़ा हुआ नही है और ना ही किसी के द्वारा बताया गया हैं। ऐसे हालात मुझ पर ही बन चुके हैं या कहे शिक्षा व्‍यवस्‍था पर वर्ग विशेष्‍ा का दबाव है कुशाभाउ ठाकरे पत्रकार‍िता एवं जनसंचार विश्‍वविघालय अपने लक्ष्‍य से भटक चुका है पत्रकारिता की शिक्षा देने के बजाय (ब्राम्‍हण) वर्ग विशेष को अच्‍छे नम्‍बर दिए जाते है मेरा मक्‍सद हिन्‍दू र्म की बुराई करना तो नहीं, लेकिन बेबाक बोलना मेरी बुराई है ये सभी शिक्षक कहते है सेमेस्‍टर की पढाई परीक्षा का परिणाम आ चुका है जिसका कोई औचित्‍य नही है पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष भी अधिकतर छात्र-छात्राएं परीक्षा परिणाम को लेकर असंतुष्‍ट हैं। वहीं इस वर्ष चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं। उत्‍तीर्ण परीक्षार्थियों की संख्‍या 76.92 प्रतिशत रही और अधिकतर छात्रों को पूरक दे दिया गया। लेकिन इन सबमें भी चौकाने वाली बात रही। इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया के छात्र जीतेन्‍द्र सोनकर को एक विषय में पूरक दे दिया गया। जोकि निजी टीवी चैनल में संबंधित विषय के अंतर्गत कार्यरत् हैं। जिस विषय में पूरक दिया गया वो है एडिटिंग ग्राफिक्‍स। जिसे बतौर नॉन लीनियर एडिटर की मुख्‍य भूमिका में 3 साल का अनुभव है। मीडिया क्षेत्र में अनुभव प्राप्‍त छात्र को पूरक देना विश्‍वविद्यालय के लिए एक शर्मनाक बात है और जाहिर है कि परीक्षा परिणाम में त्रुटियां पाई गई है। इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया के विभागाध्‍यक्ष से इस विषय पर बात करने पर आश्‍वासन के सिवाय कुछ न्‍याय संगत बातें नहीं मिली।
विभिन्‍न विषयों के परिणामों को देखें तो चौकाने वाले परिणाम आते हैं जिसमें लगातार 2 सेमेस्‍टर से प्रथम श्रेणी पर उत्‍तीर्ण छात्र को इस बार सेकेण्‍ड दर्जा दिया है। वहीं एम.जे. के छात्र में भी काफी फेरबदल हुए हैं। कुल मिलाकर सभी विषयों में विशेष वर्ग को महत्‍व दिया गया है। जितने भी छात्र पहले पायदान पर पहुंचे हैं वे सभी ऊंची जाति के हैं। जिनमें अधिकतर शर्मा, मिश्रा, शुक्‍ला जैसे उपनाम वाले छात्र हैं। वहीं पिछले सेमेस्‍टर के परिणाम में जाति विशेष को दर्जा नहीं दिया गया था। इस सेमेस्‍टर के उत्‍तीर्ण छात्र जो कि अच्‍छे नंबरों से अच्‍छे पायदान पर पहुंच चुके हैं। उन छात्रों को अच्‍छे पायदान पर पहुंचने का अंदाजा तो दूर पूरक आने तक का डर था। उसी डर ने इस तरह की जातिगत नंबरों को महत्‍व देने के आधार पर विश्‍वविद्यालय पर प्रश्‍न चिन्‍ह लगा दिया है।
असंतुष्‍टों की श्रेणी में ब्राह्मण वर्ग को छोड़ सभी निम्‍न वर्ग की श्रेणी में आते हैं। एस.टी.,एस.सी. और ओबीसी छात्र-छात्राओं का गुस्‍सा फूट रहा है। वाकई अगर हालात ऐसे ही बने तो वो दिन दूर नहीं जब हिन्‍दू खुद आपस में वर्ग विशेष के लिए न्‍याय पाने हिंसात्‍मक कदम उठा लेंगे। विश्‍वविद्यालय में बहुत सारी गतिविधियां ऐसी होती है जो कि जाति के आधार पर जाति में खुद को ऊंचे पायदान पर पहुंचाने की कोशिश रहती है। मेरा मकसद न ही जातिगत भावनाओं में फूट डालना है और न ही जाति के आधार पर भेदभाव करना है। लेकिन अगर बात शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र की हो तो शिक्षा अधिकारी को चुप नहीं बैठना चाहिए क्‍योंकि राष्‍ट्रभक्ति में शिक्षा का महत्‍वपूर्ण योगदान होता है। मेरा स्‍वयं पूरक आना पता नहीं मेरी पत्रकारिता में कितने आड़े आती है, लेकिन मैं उन पत्रकारों में से नहीं हूं जो प्रथम श्रेणी के आधार पर पत्रकार बनते हैं। अनगिनत लेखकों एवं विद्वानों के मदद से मैं अपनी बेबाकी को समय आने पर ज़रूर प्रस्‍तुत करूंगा।

2 comments:

प्रवीण त्रिवेदी said...

जीतेन्द्र जी!!
हूँ तो मै भी ब्राह्मण !!!

रही बात आपकी !! तो उस पर कुछ कहना पुरानी बहस में सिर्फ़ आग उडेलना ही होगा !!

आपको केवल इतना बता देना चाहता हूँ कि मेरा सबसे अजीज शिष्य जाति का चमार है!!

यदि आप पूरी तरह सही बात कह रहे हैं तो ..... मुझे आपके साथ सहानुभूति है ...... पर जहन तक तथ्य देखने कि बात है आप को पत्रकार बनने कि राह में अपने विचारों को और परिमार्जित करना चाहिए !! यह आपके संस्थान कि ही नहीं बल्कि हर जगह का ज्यादातर अनुभव है कि आज भी अधिकतम topper छात्र उच्च वर्ग से सम्बंधित हैं !!

शायद आप यहाँ भी आरक्षण चाहते हैं क्या???? प्रथम , द्वितीय , तृतीय स्थान भी जाति के अनुसार आरक्षित हों!!

एक सच्चे विद्यार्थी के अनुसार आप यह कतई नहीं चाह रहे होंगे ........ यह मै आपके कथनों और आपकी जिजीविषा को पढ़ कर कह रहा हूँ!!

हो सकता है कि आप के साथ कोई न-इंसाफी हुई हो .....पर पूरे संस्थान को आरोपित करना मै कतई उचित नहीं मानता हूँ/

अपने अंतर्मन में पुनः विचार मंथन करें ....... फ़िर निर्णय लें ....... आगे आपकी मर्जी!!!

आपके उज्जवल भविष्य कि शुभ कामना सहित !!!

राज भाटिय़ा said...

जीतेन्द्र जी!!सची बात यह है कि भारत मै आप किसी भी जात से हो... आप को नोकरी तभी मिलेगी जब आप पेसा खिलाये, किसी उच्चाअधिकारी से जानपाहचान हो, किसी मत्री से मित्रता हो.... बाकी सब बाते तो हम सब को वहलाने के लिये है, क्या आरक्षण तो क्या कोटा....,