
मीडया एक बडा व्यापार बना हुआ है मिडिया आवाज उठाने नही बेईमानो के पैसे दो गुणे करने मे व्यस्त है बहुत कम लोगो को इस बात की जानकारी है कि पत्रकार की औकात सिर्फ जी हुजूरी से बढकर कुछ भी नही,एक पत्रकार लंच बाक्स रख्ाने की औकात भी नही रखता प्रेस क्लब मे मिलने वाले नाश्ते से और दोपहर के किसी होटल मे प्रेस से मिलिए के बहाने दिन भर व्यस्त रहता है कुछेक प्रमुख चैनलों की छोडे तो सभी टीवी स्ट्रिंगर अपनी स्टोरी के साथ समझौता करते है क्यों कि महिने के मात्र बारह तेरह हजार उसमें भी पेट्रोल और मोबाईल के खर्चे का कोई हिसाब नही होता कुल मिलाकर महिने ख्ात्म होते और शुरू होते पांच हजार बचते है, ऐसे संवाददाता दुसरो को न्याय दिलाने के लिए जी तोड मेहनत भी करते है मगर अपनी जरूरतों के आगे सब कुछ छोडकर मुकदर्शक बन जाते है
ऐसे कथित रूप से पत्रकार कभी अपनी जरूरतों को पूरा ही नही कर सकते इनकी
मजबुरीयां इस हद तक बन चुकी है कि अपनी इंकम तक की मांग करने से कतराते है दुसरे मीडिया संस्थान में नौकरी तक के लिए तरस जाते है बतौर मार्केटिंग के किसी संवाददाता को महत्तव भी नही दिया जाता, कुछ करने और ना करने की जिद से पत्रकार दलाल से कम नही हो जाता , नंगी आंखो से देख्ाने पर पता चलता है कि मीडिया संस्थान राजनीतिक पार्टियों के हस्तक्षेप से चलाए जाते है जिसका सीधा वास्ता वोट बैंक से जुडकर सामने आता है मीडिया कुल मिलाकर लोगों को गुमराह करने का कार्य कर रही है इसका सबसे बडा उदाहरण है मीडिया के आय के स्त्रोत के रूप में सिर्फ विज्ञापन पर निर्भर होना , और विज्ञापन उत्पाद के प्रचार से मिलते है और कुछ स्पेशल स्टोरी के स्पेशल पैकेज चलाने के ,,,
लोगो मे यह गलत धारणा बन चुकी है कि मीडिया एक बहुत बडी ताकत है और इसे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ तक की संज्ञा देने से नही चुकते , मुझे यह समझ नही आया कि जब लोकतंत्र के तीनों स्तम्भ में घुन लग चुके है तो फिर चौथा स्तम्भ क्यों और कैसे बच सकता है भारत मे इले़ मीडिया का इतिहास और समाचार पत्रों के इतिहास में एक पीढी का अंतर है इस मीडिया के फेर मे लोग फसकर ग्लैमर के चक्कर मे मीडिया जैसे
क्षेत्र को चुन चुके है जिनमें मै भी एक हूॅ इससे अच्छा होता कि मै अपने गांव के किसी खेत मे हल चला रहा होता और ऐसी मीडिया के आगे सलाम तो नही करता जिसे सभी लोग एक सत्य मानकर सलाम करते है शायद और भी लोग बचे है जो पत्रकारिता को सलाम करते है,,,,,,,,,,,,
एक पत्रकार की तन्खवाह और लंच बाक्स सब बयां करती है
1 comment:
आपके इस लेख ने मेरी ऑंखें खोल दी | मैं कुछ और ही समझता था |
अच्छा लिखा है |
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