नक्सलियों के नाम पर बस्तर के मूल निवासियों के साथ छलावा किया जा रहा है। कभी नक्सली होने के साजिश के साथ तो कभी नक्सली सहयोगी होने के नाम पर आदिवासीयों की हत्या की जा रही है। जब इससे भी बात ना बने तो सलवा जुडूम के विरोधी होने का पर्चा लगाकर हत्याएं की जा रही है। छत्तीसगढ़ के मूल आदीवासीयों के लिए अब तों मुसीबत यहां तक बन चुकी हैं। कि सलवा जुडूम के नाम पर राजनीति की जा रही है, जून 2005 से सलवा जुडूम अभियान की शुरूआत आदिवासीयों के लिए किसी श्राप से कम नही। इस अभियान की शुरूआत से ही जाने गई ,जिससे डर कर आदिवासी अपना बसेरा सलवा जुडूम कैंप मे रहने लगे है जान गंवाने मे सभी जिलों से आगे है आदिवासी,,,,
नक्सलीयों का विकास कहे या छत्तीसगढ़ का ? ये तो कह नही सकते , मगर इतना जरूर कह सकते है कि आदिवासी अपने तीर-धनुष से यह लडाई जिसे शहरवासी नक्सली प्रकोप कहते है नही जीत पाएंगे। और ना ही कभी सेना के जवान और बटालियन जंगल मे घुसने की जरूरत करते है। यह सच्चाई अब पूरे प्रदेशवासियों को पता चल चुका है। कि किस प्रकार भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए किराए पर लिए हेलिकाप्टर का कोई सबूत ही नही मिल पाया है जो 3 अगस्त को आंध्रपदेश से छत्तीसगढ़ राजनाथ सिंह के लिए लाया जा रहा था। जब छत्तीसगढ़ मे लंबे चौडे आसमान के उंचाई से दिखने वाले हेलिकाप्टर का पता नही चला तो हम कैसे कह सकते है कि साढे 5 फ़ुट के आदिवासीयों की रक्षा कैंप के बहाने की जा सकती हैं।नाममात्र के बचाव से बचने के लिए छत्तीसगढ़ प्रदेश में चौकसी बढाई के नाम पर ठगी हो रही है टेलीविजन का भी भरपूर साथ मिल रहा है। प्रदेश के भावी पत्रकार नाममात्र की पत्रकारीता के साथ प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर पत्रकारीता करते है। उन्हे पत्रकारीता के बजाय डी.जी.पी., गृहमंत्री, और मुख्यमंत्री के साथ चाय कॉफी पीने मे ज्यादा मजा आता है।
नक्सलीयों का विकास कहे या छत्तीसगढ़ का ? ये तो कह नही सकते , मगर इतना जरूर कह सकते है कि आदिवासी अपने तीर-धनुष से यह लडाई जिसे शहरवासी नक्सली प्रकोप कहते है नही जीत पाएंगे। और ना ही कभी सेना के जवान और बटालियन जंगल मे घुसने की जरूरत करते है। यह सच्चाई अब पूरे प्रदेशवासियों को पता चल चुका है। कि किस प्रकार भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए किराए पर लिए हेलिकाप्टर का कोई सबूत ही नही मिल पाया है जो 3 अगस्त को आंध्रपदेश से छत्तीसगढ़ राजनाथ सिंह के लिए लाया जा रहा था। जब छत्तीसगढ़ मे लंबे चौडे आसमान के उंचाई से दिखने वाले हेलिकाप्टर का पता नही चला तो हम कैसे कह सकते है कि साढे 5 फ़ुट के आदिवासीयों की रक्षा कैंप के बहाने की जा सकती हैं।नाममात्र के बचाव से बचने के लिए छत्तीसगढ़ प्रदेश में चौकसी बढाई के नाम पर ठगी हो रही है टेलीविजन का भी भरपूर साथ मिल रहा है। प्रदेश के भावी पत्रकार नाममात्र की पत्रकारीता के साथ प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर पत्रकारीता करते है। उन्हे पत्रकारीता के बजाय डी.जी.पी., गृहमंत्री, और मुख्यमंत्री के साथ चाय कॉफी पीने मे ज्यादा मजा आता है।
प्रदेश मे आदिवासीयों की पीड़ा को समझने वाले की कोई कमी नही हैं। और ना ही एन.जी.ओ. की,। इन सब सुविधाओं के होने के बावजूद भी नक्सली दर्द और आदिवासी दर्द के वकालत करने मे बढ़ोत्तरी हुई है। स्थानीय नेता के सलवा जुडूम की आगाज के बाद आदिवासीयों को मिलने वाली सुविधा मे कैंप और सरेराह मौत भी मिली है। अब ना तो आदिवासी अपने घर जा सकते हैं। और ना ही पशु जैसे कैंप के चार दिवारी में रह सकते है। स्थानीय जनजातियो के लिए हत्या और आत्महत्या के बीच की नौबत आ चुकी है।