Saturday, October 18, 2008
देह व्यापार और मानव तस्करी का अड़डा है छत्तीसगढ़ का आदिवासी क्षेत्र |
Monday, October 13, 2008
सलवा जुडूम के संदर्भ मे
जिस धार्मिक संगठन को राजनीतिक पार्टियां आतंकवादी संगठन कह रही है वह तो जानते ही नही कि अस्त शस्त का उपयोग करने संगठन नक्सली इलाकों मे कूच करने वाले है ऐसे धर्म के रखवाले को नक्सलीयों से डर नही लगता। ये खबर मुझे कुछ महीने पूर्व वेलेन्टाइन डे, और फ्रेन्डशिप डे के दिन मालूम चल गया, जब राजधानी रायपुर मे ये संगठन इस आयोजन को पश्चिमी संस्क़ृति बताकर विरोध प्रर्दशन कर रहे थे इतनी बहादूरी भला किस संगठन मे हो सकती है।अखबार से लेकर टी़वी़ चैनल तक में हेडलाइन्स बनने वाले धार्मिक संगठन को भारत के लोग कितने हल्के मे ले रहे है ये राजनेताओं के मानसिक दिवालियापन को दर्शाता है
मै तो अगली चिटठी पुलिस महानिदेशक को लिखने वाला हू और उनसे आग्रह करूंगा कि जितने भी धार्मिक संगठन है उन्हे तत्काल सलवा जुडूम आंदोलन के लिए भेजा जाएं ,और तैयारी कराने की कोई जरूरत नही है उनकी देशभक्ति पर कृपया शक न करें ये हमारे धर्म को बचाने के लिए हमेशा आगे रहते है और वैसे भी जब ये एक राष्टीय समस्या है तों फिर राष्ट सेवा का मौका देना तो बहूत जरूरी है।
धन्यवाद
Wednesday, October 8, 2008
और फिर गरीब की झोपड़ी से ?
मैं एक सामान्य इंसान से मिला जिसे बॉलीवुड की विचित्र दुनिया मे स्वयं सहायक भूमिका के साथ लाखों बुराइयों के बावजूद प्यार करते हुए दिखाया गया ,क्या वास्तव मे वह गांधी जी थे या फिर कोई और लेकिन जब शहर की गलियों मे एक प्रभावशाली व्यक्तित्व की तलाश करते घूमा तों कांसे मे ढले सार्वजनिक पार्क मे सरकारी संस्थानो के बाहर अकेले खडे कुछ सोंच रहे थे देखते ही देखते भारतीय रिजर्व बैंक के करेंसी नोट पर उनकी फोटो छपी थी
मझोले कद का वह व्यक्ति , छरहरा बदन, चश्मा पहने व लम्बी लाठी लिए, सफेद धोती बांधे अपने ढंग की पुरानी सी विशेष घड़ी के साथ पता नही चौराहे पर क्यो खडे है वहां खडें कुछ बुजूर्गो ने कहा की ये हमारे आदर्श पुरूष है और अंग्रेज इनसे डरकर भाग गए।1947 की आजादी मे इनका महत्तवपूर्ण योगदान था। (लेकिन कैसी आजादी ? )
अमीर धरती मे कुछ गरीबों के लिए भी सोंचा जाता है ऐसे ही एक राजनीतिक पार्टी के स्लोगन मे नजर गई ,, कांग्रेस का हाथ गरीब के साथ ,, भाजपा सरकार गांव गरीब और किसान की सरकार ,,जो बहूजन की बात करेगा,,,-और भी राजनीतिक पार्टिया गरीबो का साथ देने की बात करते नजर आयी ,पर गरीब कहा रहते है ?
गरीबों के आदर्श व्यक्तित्व की तलाश करते मेरी नजर ने एक अन्य उपस्थिति दर्ज की । वह थी नीला सूट काली टाई व मोटे फ्रेम का चश्मा लगाए और अपने बॉये हाथ से कलेजे पर लगायी एक पुस्तक के साथ खड़ा -वह व्यक्ति ? मैने उसे दलितों के बीच हर जगह पाया ,पता नही लगा पाया की संविधान निर्माता वाकई डॉ. भीमराव अम्बेडकर हैं जब तक की दलितों की एक टोली से मेरी मुलाकात नही हुयीं इनका रूपचित्र उनकी दीवारों पर लगा और उनके शब्द उनके होंठों पे हावी,,,,
मेरे मन में विचार आया कि क्या एक धोती धारी और एक कोट धारी महापुरूषो को भी अमीरी और गरीबी ने बांट दिया तभी दलितों के बीच एक बूढ़ी औरत ने पूछा की - बेटा क्या पूरे विश्व मे गांधी जैसे अंबेडकर भी मशहूर है। मै फिर ? ? ? ? ?
Tuesday, October 7, 2008
कही गुम हो गई है मानवता....?
मानव बढ् गए है
मानवता घट गयी है
पहले भावना विशाल थी
अब सिमट रहे है
बाद रही है दूरियां
आदमी की आदमी से
इंसान की लाश अब
चौराहे पर लटक रहे है
किसी की कलाई मे
सोने की घडी होती है
किसी की कार
मोंतियों से जडी होती है
और किसी की लाश
बिना कफन के पडी होती है
Monday, October 6, 2008
पत्रकारिता विश्वविद्यालय बनाम चटूकारिता विश्वविद्यालय
कुलपति महोदय से पढ़ाई के बारे में चर्चा करने पर घूमा-फिराकर कर जवाब देते है। 52 हजार फीस देकर पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को संतुष्ट करने के लिए पडोसी राज्य मध्यप्रदेश के माखनलाल वि.वि. से मेहमान शिक्षक भी बुलाएं जाते रहे है। और रविवार को भी कक्षा लगने का कार्य भी तगड़ा चला ,फिर सभी माहौल शांत होते देख वि.वि.प्रशासन खामोश हो गया ,छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले कुलपति महोदय फिल्मी डॉयलॉग भी सुनाते है महोदय के सीधे-साधे रवैये से छात्र हर बार ठगे जाते रहे है। और आज तक पुनरावृत्ति हो रही है।
छात्र हर बार की पुनरावृत्ति से दो धड़ मे बट चुके है। एक तरफ पत्रकारिता के तो दूसरी तरफ चटूकारिता के छात्र आपसे मे भीड़ जाते है। और वि.वि. प्रशासन खामोश रहता है। अब समस्या क्षेत्रवाद तक बढ़ गया है, छात्र क्षेत्रवाद के शिकार हो रहे है। पूरे वि.वि. में अराजकता का माहौल बढ़ाता जा रहा है। तो छात्र भी चुप्पी साधे हुए है। छत्तीसगढ़ सरकार के सात वि.वि. में कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता वि.वि.भी शामिल है, जो फिलहाल किराए के भवन में संचालित हो रही है। वि.वि. में अटल बिहारी बाजपेयी का योगदान भी है रमन सरकार के कार्यकाल में इस वि.वि. का हाल बेहाल है। जब पांच साल के कार्यकाल मे छात्रों को शिक्षक मुहैया नही कर पायी तो आगे कार्यकाल मे इसका हाल प्रशासन भरोसे है
फिलहाल अधिकतर छात्र चटूकारिता करने से व्यस्त है, और अव्यवस्था के खिलाफ बोलने वाले बचे कुछ छात्र डिफाल्टर घोषित हो चुके है और यही चटूकारिता करने वाले छात्र आगे चलकर राजनीति करने की बात करते है पता नही हमारे लोकतंत्र का और चटूकारिता-पत्रकारिता का भविष्य किसके हाथ में है……………………………………….
आज भी धरती के उपर होती है -गेडी डांस
Saturday, October 4, 2008
छात्र संगठनों ने बढ़ा दी है बेरोजगारी ?
युवाओं का उपयोग राजनेता व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए तो करते ही हैं। साथ ही युवा राजनीति से भटक चुके हैं, युवाओं को राजनीति में धरना प्रदर्शन के अलावा कुछ नज़र नहीं आता। कुछ छात्र संगठन का तो हाल ये है कि छोटे-मोटे काम जैसे परीक्षा के समय पेपर लीक करवाना, चुनाव के समय शराब बंटवाना और मोहल्ले में दल-बल के साथ मारपीट करना और फिर संगठन को चलाने वाले नेता से फोन पर कानूनी मदद की पेशकश की जाती है। और बात जब यहां तक न बने तो दूसरी पार्टियों के युवा संगठन से मिल जाते हैं, और पूर्व संगठन पार्टी के विरोधी होते हैं।
सभी थानों में एक नज़र डालें तो फाइलों की संख्या में राजनीतिक युवाओं का नाम अधिक आता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस कदर युवा बहक गए हैं। जो अपराध करने में अपना समय बिताते हैं। जिसकी शुरूआत, महाविद्यालयीन छात्रसंघ चुनाव से ही हो जाती है, पढ़ने के समय राजनीति की शुरूआत हो जाती है। कुछ छात्र तो कॉलेज से पढ़ने के बाद सांसद, विधायक, महापौर, पार्षद और सरपंच बन जाते हैं। फिर भी युवाओं में बेरोजगारी को लेकर बहस होते रहती है। पिछले 30 सालों से राजधानी रायपुर के दुर्गा महाविद्यालय से अनेक छात्र नेता महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हुए हैं। फिर भी युवाओं में बेरोजगारी दूर नहीं हुई है।
छत्तीसगढ़ में युवा बेरोजगारों की संख्या इस कदर हावी हो चुकी है, कि वो कुछ पैसों के लिए बड़े-बड़े कारनामे कर सकती है। दूसरों के जान की को नहीं होती। ये छत्तीसगढ़ का सौभाग्य है कि कोई बड़ी घटना युवा बेरोगारों ने अब तक नहीं की। पर ये कब तक चलेगा। जिस दिन बेरोजगारी और बढ़ जाएगी। छत्तीसगढ़ में दिल्ली के धमाकों की आवाज़ आएगी।