Saturday, October 4, 2008

छात्र संगठनों ने बढ़ा दी है बेरोजगारी ?

भारत में आज जितना महत्‍व राजनीति में युवाओं को दिया जा रहा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है, कि राजनीतिक झंडा पकड़कर नारे लगाना, विरोध प्रदर्शन करना, धरने पर बैठना और बेगारी भरा काम करना जिससे राजनीति के एप्रोज में पकड़ हो जाए, में युवा बेरोजगारों का प्रयोग किया जा रहा है। छत्‍तीसगढ़ के संदर्भ में बात करें तो युवा शक्ति, राष्‍ट्रशक्ति का बहाना बनाकर पूंजीपति वर्ग, मध्‍यम वर्ग के युवाओं के साथ राजनीतिक स्‍वार्थ निकालने के साथ मध्‍यम वर्गीय परिवार में बेरोजगारी को बढ़ा रही है। जिस उम्र में युवाओं को रोजगार संबंधी जानकारी और घर-परिवार की ओर ध्‍यान देने की ज़रूरत होती है। उस उम्र का प्रयोग राजनीतिक पार्टियों की कठपुतली बनकर करते हैं।

युवाओं का उपयोग राजनेता व्‍यक्तिगत स्‍वार्थ के लिए तो करते ही हैं। साथ ही युवा राजनीति से भटक चुके हैं, युवाओं को राजनीति में धरना प्रदर्शन के अलावा कुछ नज़र नहीं आता। कुछ छात्र संगठन का तो हाल ये है कि छोटे-मोटे काम जैसे परीक्षा के समय पेपर लीक करवाना, चुनाव के समय शराब बंटवाना और मोहल्‍ले में दल-बल के साथ मारपीट करना और फिर संगठन को चलाने वाले नेता से फोन पर कानूनी मदद की पेशकश की जाती है। और बात जब यहां तक न बने तो दूसरी पार्टियों के युवा संगठन से मिल जाते हैं, और पूर्व संगठन पार्टी के विरोधी होते हैं।
सभी थानों में एक नज़र डालें तो फाइलों की संख्‍या में राजनीतिक युवाओं का नाम अधिक आता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस कदर युवा बहक गए हैं। जो अपराध करने में अपना समय बि‍ताते हैं। जिसकी शुरूआत, महाविद्यालयीन छात्रसंघ चुनाव से ही हो जाती है, पढ़ने के समय राजनीति की शुरूआत हो जाती है। कुछ छात्र तो कॉलेज से पढ़ने के बाद सांसद, विधायक, महापौर, पार्षद और सरपंच बन जाते हैं। फिर भी युवाओं में बेरोजगारी को लेकर बहस होते रहती है। पिछले 30 सालों से राजधानी रायपुर के दुर्गा महाविद्यालय से अनेक छात्र नेता महत्‍वपूर्ण पदों पर आसीन हुए हैं। फिर भी युवाओं में बेरोजगारी दूर नहीं हुई है।

छत्‍तीसगढ़ में युवा बेरोजगारों की संख्‍या इस कदर हावी हो चुकी है, कि वो कुछ पैसों के लिए बड़े-बड़े कारनामे कर सकती है। दूसरों के जान की को नहीं होती। ये छत्‍तीसगढ़ का सौभाग्‍य है कि कोई बड़ी घटना युवा बेरोगारों ने अब तक नहीं की। पर ये कब तक चलेगा। जिस दिन बेरोजगारी और बढ़ जाएगी। छत्‍तीसगढ़ में दिल्‍ली के धमाकों की आवाज़ आएगी।

3 comments:

Unknown said...

भैया, क्या करेगा युवा पढ़-लिखकर? अकेले मध्यप्रदेश से हर साल 44,000 बीई निकल रहे हैं और सड़कों पर फ़ालतू घूम रहे हैं, यदि युवा प्रतिभाशाली निकल भी गया तो क्या, आरक्षण से मार खा जायेगा। भाई जी यदि नेतागिरी में लगेगा तो हो सकता है कि किसी "भाई" से पहचान हो जाये, किसी भ्रष्ट ठेकेदार से कुछ गुर सीखने को मिल जायें, किसी अफ़सर को ब्लैकमेल करने का कोई जरिया निकल आये… बहुत ऑप्शन हैं यार… टेंशन लेने का नईं…

सचिन मिश्रा said...

Badiya likha hai. likhte rahiye.

Sanjeet Tripathi said...

मुद्दा बहुत सटीक चुना है बंधु।
प्रोफाईल में परिचय वाली पंक्तियां प्रभावी है।
शुभकामनाएं!

और हां, कमेंट बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें, इससे दिक्कत ज्यादा है सहूलियत कम।