Saturday, October 18, 2008

देह व्‍यापार और मानव तस्‍करी का अड़डा है छत्तीसगढ़ का आदिवासी क्षेत्र |

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लडकियों के विकास के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। उसके बाद भी राज्य के आदिवासी बाहुल्य जशपुर तथा सरगुजा जिले की हजारों लडकियां महानगरों की सब्जबाग के झांसे में आकर वहां नरक की जिंदगी जी रही हैं। कईयों की मौत के बाद उनकी लाश तक घर नहीं पहुंच पाई। किसी तरह भागकर घर पहुंची लड़कियां विक्षिप्त और रोग ग्रस्त होकर काल के गाल में समा गई। इसके बाद भी अच्छी नौकरी दिलाने के नाम पर इन आदिवासी क्षेत्रों से लड़कियों की तस्करी जारी है। अब तक कई तस्कर भी पकड़े जा चुके है। लेकिन सरकार इस दिशा में गंभीर नहीं हुई है। बंग्लादेश, मिजोरम तथा नेपाल की तरह छत्तीसगढ़ की लड़कियों की तस्करी पिछले सात सालों से बखौफ चल रहा है। लड़कियों को दिल्ली, गोवा जैसे महानगरों का सब्जबाज तथा ऐश की जिंदगी जीने सपना दिखाकर तस्कर अपने जाल में फांस रहे हैं। लेकिन दुभाग्य की बात है कि सरकार द्वारा इस ओर कोई सार्थक पहल नहीं किया जा रहा है। जशपुर में मानव व्यपार के खिलाफ पिछले दो सालों से अभियान चला रही संत अन्ना एनजीओ की सि. सेवती पन्ना बताती हैं कि सन् 2005-07 में किये गये सवरॊ में जशपुर के 98 पंचायतों से 3191 लड़कियों को एजेंटों ने अपने जाल में फांसकर कथित प्लेसमेंट एजेंसियों के हवाले कर दिया। अगर पूरे जशपुर जिले का सर्वे किया जाये तो यह आकड़ा बीस हजार तक पहुंच सकता है। उन्होंने बताया कि दलालों को एक लड़की पर छह हजार से लेकर आठ हजार रूपये तक कमीशन मिलता है। यह कमीशन तब और भी यादा होता है जब लड़की की उम्र बारह से पन्द्रह साल के बीच होती है। जहां से एजेंट लड़कियों को दिल्ली स्थित प्लेसमेंट एजेंसियों के हवाले कर देते हैं। वहां एजेंसी संचालक महिने भर तक लड़कियों को छोटे-छोटे कमरो में पन्द्रह, बीस-बीस की संख्या में रखते है और उनके साथ लड़के भी होते हैं। जहां उन्हें जबरन शराब पिलाई जाती है, ब्लू फिल्म दिखाई जाती है और उन्हें कई लोगों के साथ सेक्स के लिए अभ्यस्त किया जाता है। महिने भर बाद उन्हें रईस जादों के बंगलों में काम करने के लिए भेज दिया जाता है। बंगलों के मालिक प्लेसमेंट एजेंसी के संचालकों से 11 माह के लिए अनुबंध करते हैं। पैसा सीधे लड़की को न देकर प्लेसमेंट एजेंसी के संचालकों को मिलती है। उसका बीस-पचीस फीसदी राशि ही लड़कियों को दी जाती है। प्लेसमेंट एजेंसी में ही लड़कियों के साथ शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना खत्म नहीं होती बल्कि जब ये लडक़ियां रईसों के घर काम करती है वहां भी इनके साथ जानवरों की तरह सलूक किया जाता है। घर मालकिन जहां इन्हें खाना नहीं देकर तथा मारपीट करते हुये प्रताड़ित करती है वहीं दूसरी तरफ इात के साथ खिलवाड़ होता रहता है। कभी बंगले का मालिक तो कभी उसका बेटा और कभी उसका गार्ड व ड्राईवर अपनी हवस मिटाते रहते हैं। उन्होंने बताया कि जिस हालत में गांव छोड़कर लड़कियां जाती है उस हालत में नहीं लौट पाती। कईयों की तो वहीं मौत हो जाती है और लाश तक का पता नहीं चलता। जशपुर के बगीचा थाना क्षेत्र स्थित महुवाडीह निवासी आलोचना बाई 17 वर्ष की घर लौटते ही मौत हो गई। जबकि तीन अन्य लड़कियां विक्षिप्त अवस्था में घर लौटी । जशपुर में तीन साल के भीतर 11 लड़कियों की मौत हो चुकी है। आलोचना बाई के ईलाज के नाम पर प्लेसमेंट एजेंसी ने तीस हजार रूपये का बिल उसके पिता को थमा दिया और बेटी को किसी तरह घर तक लाने में जमीन जायजाद बिक गई। आलोचना ही एक ऐसी लड़की नहीं है बल्कि सरगुजा जिले के सीतापुर क्षेत्र स्थित राजापुर निवासी एक लड़की की लाश दिल्ली में ही सड़ गई। यह युवती अपनी छोटी बहन के साथ दिल्ली चली गई थी। इस घटना के बाद आशंका जताई जा रही थी कि जब वह गर्भवती हुई होगी तो उस पर गर्भपात का दबाव डाला गया होगा और जब उसने इंकार किया होगा तो उसकी हत्या कर दी गई। इस आशंका पर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसी तरह कोट छाल निवासी 17 वर्षीय सीतो बाई को एजेंट द्वारा अपने साथ ले जाया गया था लेकिन कुछ महिने बाद एक सुबह वह घर के बाहर विक्षिप्त अवस्था में पडी हुई मिली। उसके हाथ-पैर बंधे और टूटे हुए थे। मानव तस्क री से सरगुजा और जशपुर के शैक्षणिक संस्थान भी सुरक्षित नहीं रह गये है। सरगुजा जिले के राजपुर विकासखंड स्थित कोदौरा के मिशन स्कूल के हॉस्टल से तीन लड़कियों को एजेंट ने दिल्ली ले जाकर नरक के दलदल में डाल दिया था। इनमें एक गुंगी लड़की भी थी। सरगुजा में मानव तस्करी तथा एड्स जागरूकता के खिलाफ काम कर रहे आशा एसोसिएशन तथा नवा बिहान कल्याण समिति के पदाधिकारियों ने छुटकारा दिलाया। ये दोनों एन.जी.ओ. कुछ सालों से मानव तस्करी के खिलाफ काम कर रहे है। एनजीओ को मानव तस्करी व एड्स के खिलाफ अभियान चलाने के लिए क्रिश्चयन रिलिफ सर्विस द्वारा दो वर्ष पूर्व बजट उपलब्ध कराया गया था। संत अन्ना की सि. सेवती का कहती है कि उन्होंने दिल्ली स्थित 144 प्लेसमेंट एजेंसियों का निरीक्षण किया है और वहां रहने वाली लड़कियों की नरकीय जिन्दगीं को नजदीक से देखा है। दिल्ली में करीब तीन हजार प्लेसमेंट एजेंसियां है और करीब-करीब सभी एजेंसियों का नाम देवी देवताओं तथा धर्म पुरोहितों के नाम से है। इनमें मरियम, गणेश, संत अन्ना, जय माँ दुर्गा, मदर टेरेसा, आदि शामिल हैं। इन नामों का बोर्ड लटके देख किसी को सहसा यकिन नहीं होता कि यहां काम दिलाने के नाम पर लडक़ियों के साथ जल्लाद जैसा व्यवहार भी होता होगा। उन्होंने बताया कि लड़कियों का नाम तथा पता प्लेसमेंट एजेंसी में बदल दिया जाता है ताकि कोई उन्हें ढूंढने जाये तो उसका पता न चले। सरगुजा तथा जशपुर के अलावा रायगढ़ तथा झारखंड एवं बिहार की लड़कियों को भी दलाल अपने जाल में फांस रहे है। झारखंड की तीन लड़कियां मार्च 2006 में गर्भवती हो गई थी। इनमें एक लड़की जयपुर के आबकारी अधिकारी के घर में काम करती थी जहां उसके साथ अधिकारी के प्रमोद नामक बेटे ने बलात्कार किया । जब वह गर्भवती हुई तो कमिश्नर के बेटे ने गर्भपात कराने का दबाव डाला। जब उसने इससे इंकार कर दिया तो एक रात उसे गार्ड के माध्यम से इस रईस जादे के बेटे ने घर से निकाल दिया और वह चेतनालय नामक एक एनजीओ में पहुंची और जहां आप बीती बताई। चेतनालय के डोमेस्टिक वर्कर फोरम ने युवती को जयपुर पश्चिम कोतवाली ले जा कर घटना की रिपोर्ट लिखवाई । फोरम के निर्देशक सिस्टर लेवना बताती हैं कि पुलिस ने अपराध दर्ज कर आरोपी युवक को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन डाक्टरी रिपोट में बलात्कार का मामला नहीं आने पर आरोपी बेल पर न्यायलय से छूट गया । अब मामला न्यायलय में विचाराधीन है पर गरीबी एवं जागरूकता के अभाव में पीडित युवती कोर्ट नही आ रही है। इससे आरोपी युवक न्यायालय से बरी हो सकता है। कई रईस जादे प्लेसमेंट एजेंसियों से लड़कियों को काम पर इसलिए भी रखते है ताकि उन्हें और उनके परिवार के युवकों को शादी के पहले वेश्यालय न जाना पड़े। नवा बिहान कल्याण समिति के नौसाद अली बताते है कि मानव तस्करी की समस्या काफी गंभीर हो गई है। इससे सरगुजा जिले के कुसमी, शंकरगढ़, बतौली, सीतापुर, उदयपुर क्षेत्र सबसे यादा प्रभावित है। सीतापुर, बतौली तथा उदयपुर विकासखंड का निरीक्षण किया गया था जिसमें 762 लड़कियां दिल्ली गई थी। लेकिन उस समय लोग खुलकर बताने को तैयार नहीं थे। संस्था ने आशा एसोसियएशन के साथ मिलकर सर्वे करना शुरु किया तो एक-एक गांव से चालीस-पचास लड़कियां गायब मिली। इसके लिए जागरुकता का कार्यक्रम शुरु किया गया। इसका अच्छा प्रतिसाद देखने को मिला लेकिन सरकार द्वारा इसके लिए कोई बजट नहीं मिलने के कारण वे ठीक से काम नहीं कर पा रहे है। इसी सप्ताह सरगुजा जिले से दिल्ली गई 70 लड़कियों को वापस लाया गया। ये लड़कियां अब भूलकर भी वहां नहीं जाना चाहती। नौसाद बताते है कि दोनों संस्थाओं द्वारा ऐसी लड़कियॊ के अभिभावकों से संपर्क कर पहले तो गुमशुदगी की थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है या फिर बहला फु सलाकर ले जाने की जानकारी पुलिस को दी जाती है। इसके बाद पंचायत से युवती तथा उसके अभिभावक रिश्ता बताते हुये एक प्रमाण पत्र पंचायत से जारी किया जाता है। जिसमें दोनों का फोटो होता है। इतनी कार्रवाई कर अभिभावाकों को दिल्ली भेज दिया जाता है। दिल्ली में मानव व्यापार के खिलाफ काम करने वाले सिस्टर सोफिया व मैक्सिमा युवतियों को जाल से छुडाने अभिभावकों का मदद करती हैं। नौसाद मानव व्यापार रूपी इस पलायन को देह व्यापार का बिगड़ा स्वरूप मानते हुए कहते है कि इससे सरगुजा तथा जशपुर में एड्स की भयावह स्थिति है। अगर जांच की जाये तो चौकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं। सिस्टर सेवती पन्ना कहती है कि कई लड़कियां वापस घर आने के बाद दोबारा फिर दिल्ली जाना चाहती है। इसका प्रमुख कारण है कि गांव लौटने के बाद उन्हें समाज दूसरी नजर से देखने लगता है और वे कुंठित रहने लगती है। यही नहीं वहां रहकर ये लड़कियां फ्री सेक्स के लिए स्वतंत्र रहती है। लेकिन यहां वह संभव नहीं होता। सब्जबाग में फंसकर लड़कियॊ के दिल्ली जाने के लिए सेवती पन्ना गरीबी को यादा जिम्मेदार नहीं मानती बल्कि वे नैतिक शिक्षा के अभाव को महत्वपूर्ण मानती है। एनजीओ ने जब लड़कियॊं की तस्करी के खिलाफ काम करना शुरु किया तो मामला खुलकर सामने आया और पुलिस ने भी एजेंटो के खिलाफ कार्रवाई शुरु की। दोनों जिलों में कुछ सालों के भीतर दर्जन भर से अधिक एजेंट पकड़े जा चुके है। इन एजेंटों में महिलाएं तथा स्थानीय लोग भी शामिल हैं। जशपुर के कुनकुरी में एजेंटो के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर उन्हें छोड़ देने का मामला विधानसभा में भी उठा था और गृहमंत्री ने कुनकुरी थाना के तीन पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया था। उसके बाद भी दोनों जिलों सहित दूसरे प्रभावित राज्यों में पुलिस द्वारा एजेंटो पर सख्ती से कार्रवाई नहीं की जाती। जशपुर में बाहरी एजेंटों के अलावा लड़कियॊ की तस्करी में लोहार तथा डोम जाति के लोगों का हाथ भी सामने आता रहा है। यही नहीं जशपुर जिले के सोनकयारी गांव का एक व्यक्ति दिल्ली में प्लेसमेंट एजेंसी चलता है और इसी समय कुनकुरी की दर्जनों लड़किया दिल्ली स्थित श्री गणेश प्लेसमेंट एजेंसी में फसी हुई है। बताया जाता है कि इन्हें जशपुर के बटईकेला निवासी बंटी नामक एजेंट ने एजेंसी के हवाले कर दिया है। जशपुर में लड़कियों को काम दिलाने के नाम पर तस्करी का धंधा सन् 2000 के आस-पास शुरु हुआ था। उस समय लड़कियां खुद काम की तलाश में बड़े शहरों की ओर रुख कर रही थी। लेकिन उस समय इसका पता शायद उस समय किसी को नहीं था कि आने वाले दिनों में इसका भयावाह रूप देखने को मिलेगा। वहीं सरगुजा में इसकी शुरुवात मैनपाठ से हुआ जहां के गलीचा सेंटर वाले क्षेत्र के लड़कियों को बनारस स्थित भदोही के कालीन उद्योग के लिए भेज रहे थे। मैनपाठ से लड़कियों की तस्करी अभी नहीं रूकी है। आशा एसोसिएशन के डायरेक्टर फादर विलियम ने बताया कि संस्था द्वारा इन दिनों सीतापुर क्षेत्र के 50 गांव में लोगों को जागरूक करने के लिए काम किया जा रहा है लेकिन जागरूकता कार्यक्रम में सबसे बड़ी बाधा लोगों द्वारा धर्मान्तरण की गलतफलमी है। दूसरी समस्या पंचायतों से पंचायत प्रतिनिधियों का सहयोग नहीं मिलना है। संस्था के कार्यकर्ताओं के साथ दिल्ली,मुंबई,बंगलोर से पीड़ित होकर लौटी लड़कियों द्वारा गांवो में जाकर लोगों को आप बीती सुनाई जाती है ताकि एंजेटों के बहकावे में दूसरी लड़कियां न आवे। संस्था द्वारा गांव में निगरानी समिति भी बनाई गई है जो गांव में लडकियों को बहला-फुसलाकर ले जाने वालों पर नजर रखती है। लड़कियों की तस्करी को देखते हुये राष्ट्रीय स्तर पर घरेलू कामकाजी महिलाओं तथा लड़कियों के लिए कानून बनाने पर भी विचार किया गया। मार्च 2007 में भी मंत्रालय ने देश भर के सभी राज्यों से महिला बाल विकास तथा एनजीओ के प्रतिनिधियों को इसके लिए आगे आने कहा था। लेकिन छत्तीसगढ़ की एक मात्र सिस्टर सेवती पन्ना इस बैठक में गई थी। अभी तक सरकारी स्तर पर डोमेस्टिक वर्करों के लिए कोई कानून नहीं बनाया जा सका है। मुझे आज तक पता नही चल पाया कि सरकार की योजनाएं लडकियों की किस दशा को बेहतर बनाने प्रयासरत है \

6 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

बेहद शर्म की बात है...

manvinder bhimber said...

sahi likha hai.....meerut ke radlight area mai bhi gar din wahan se ladkiyan laae jaati hai.....bahad sharamnaak hai

संगीता पुरी said...

कुछ ऐसे संभ्रांत परिवार भी हैं ,जहां पति.पत्नी दोनो कामकाजी है, जो सारी सुविधाएं देकर भी दिनरात अपने पारिवारिक कार्यों के लिए लड़कियों को रख सकते हैं , वैसे लोगों को काफी दिक्कते आती है और दूसरी ओर लड़कियों का इतना शोषण हो रहा है। कानून को सख्त बनाए जाने की जरूरत है।

राज भाटिय़ा said...

ऎसे लोगो को जो इस देह व्‍यापार और मानव तस्‍करी से जुडे है पकडते ही गोली मार देनी चाहिये, क्यो कि यह एक नही बहुत सी जिन्दगियो से खेलते है, लोगो की भावनाओ से खेलते है

श्रीकांत पाराशर said...

Bhole bhale aadivashiyon ko sex ki dukan samajhnewalon ke sath vaisa hi bartav karna chahiye jaisa ve aadivashiyon ke saath karte hain.

सचिन मिश्रा said...

Bahut hi sarmnak hai.